Book Title: Gurugunshat Trinshtshatrinshika Kulak
Author(s): Hemchandrasuri
Publisher: Sanghvi Ambalal Ratanchand Jain Dharmik Trust
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'जं विवित्तमणाइन्नं, रहियं इत्थिजणेण य। बंभचेरस्स रक्खट्ठा, आलयं तु निसेवए॥२॥ मणपल्हायजणणी, कामरागविवड्डणी। बंभचेररओ भिक्खू, थीकहं तु विवजए॥३॥ समं च संथवं थीहिं, संकहं च अभिक्खणं। बंभचेररओ भिक्खू निच्चसो परिवजए॥४॥ अंगपच्चंगसंठाणं, चारुल्लवियपेहियं। बंभचेररओ भिक्खु, चक्खुगिझं विवजए॥५॥ कुइयं रुइयं गीयं, हसियं थणियकंदियं । बंभचेररओ भिक्खू, सोयगिज्झं विवजए॥६॥ हासं किडं रयं दप्पं, सयणं चित्तासयाणि य। बंभचेररओ थीणं, नाणुचिंते कयाइवि॥७॥ पणीयं भत्तपाणं तु, खिप्पं मयविवडणं। बंभचेररओ भिक्खू, निच्चसो परिवजए॥८॥ धम्मं लर्बु मियं कालं, जत्तत्थं पणिहाणवं। बंभचेररओ भिक्खू, नाइ निच्चं तु भुंजए॥९॥ विभूसं परिवजिजा, सरीरपरिमंडणं।
बंभचेररओ भिक्खू, सिंगारत्थं न धारए॥१०॥' (उत्तराध्ययनसूत्रम् ४९२५००) तदेताभिर्नवभिर्ब्रह्मचर्यगुप्तिभिर्गुप्तः।
तथा नव निदानानि राजत्वाद्यभिलाषरूपाणि। यदाह'राया १ उग्गाइसुओ २, इत्थी ३ पुरिसो ४ तहेव देवो ५ य।
आयप्पयार ६ अवियार ७ सावओ ८ तह दरिद्दसुओ९॥१॥ जं चक्कहराईणं, पयवीए पत्थणं करे जीवो। बहुसुकयविक्कएणं, रायत्तनियाणमेयंति॥२॥ नरयनिमित्तं रज, तम्हा उग्गाइसुकुलसंभूओ।
हुजाहमिय नियाणं, जं कीरइ तमिह उग्गाइ॥३॥ १. ड-पुस्तके-‘काले' इत्यपि। २. नातिमत्तं । ...१९२...
नव निदानानि
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