Book Title: Gurugunshat Trinshtshatrinshika Kulak
Author(s): Hemchandrasuri
Publisher: Sanghvi Ambalal Ratanchand Jain Dharmik Trust

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Page 223
________________ संसयकरणं जंपि य, जो तेसु अणायरो पयत्थेसुं। तं पंचविहं मिच्छं, तद्दिट्टी मिच्छदिट्ठी य॥३॥ उवसमअद्धाइठिओ, मिच्छमपत्तो तमेव गंतुमणो। सम्मं आसायंतो, सासायणिमो मुणेयव्वो॥४॥ जह गुडदहिणी महिया-णि भावसहियाणि हुंति मीसाणि। भुंजंतस्स तहोभय, तद्दिट्टी मीसदिट्ठी य॥५॥ तिविहेवि हु सम्मत्ते, थेवावि न जस्स विरइ कम्मवसा। सो अविरइत्ति भण्णइ, देसे पुण देसविरई य॥६॥ विगहाकसायनिद्दा-सद्दाइरओ भवे पमत्तुत्ति पंचसमिओ तिगुत्तो, अपमत्तजई मुणेअव्वो॥७॥ अप्पुव्वं अप्पुव्वं, जहुत्तरं जो करेई ठिइकंडं। रसकंडं तग्घायं, सो होइ अपुव्वकरणो य॥८॥ विणियटुंति विसुद्धिं, समयपइट्ठावि जं च अनुन्नं। तत्तो नियट्टिठाणं, विवरीयमओ अ अनियट्टी॥९॥ थूलाण लोहखंडा-ण वेयगो बायरो मुणेयव्वो। सुहूमाण होइ सुहुमो, उवएसंतेणं तु उवसंतो॥१०॥ खीणम्मि मोहणिजे, खीणकसाओ सजोगजोगुत्ति। हुंति पउत्ता य तओ, अपवत्ता हुँति हु अजोगी॥११॥' (षडशीतिभाष्यम् १-१०) चतुर्दश प्रतिरूपप्रमुखा गुणाः प्रतीता एव। यथा - 'पडिरूवो तेयस्सी, जुगप्पहाणागमो महुरवक्को। गंभीरो धिइमंतो, उवएसपरो य आयरिओ॥१॥ अपरिस्सावी सोमो, संगहसीलो अभिग्गहमई य। अविकत्थणो अचवलो, पसंतहियओ गुरू होइ॥२॥' (उपदेशमाला १०,११) अष्टसूक्ष्माणि स्नेहसूक्ष्मादीनि। यथा - १. युगपत्प्रविष्टा अपि॥ ...२०८... चतुर्दश प्रतिरूपप्रमुखा गुणाः

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