Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका. सू. २ सुधर्मस्वामिनःचम्पानगर्यासमवसरणम् ३१
- एतादृश आर्यजम्बूनामाऽनगारः 'उठाए' , उत्थया-उत्थानम् उत्था, तया ऊ/भवनेन ऊर्चीभूयेत्यर्थः, 'उठेइ' उत्तिष्ठति उत्थितो भवति, उत्थाय यत्रवाऽऽयं सुधर्मास्थविरो विराजते तत्रैवोपागच्छति, उपागत्य आर्यसुधर्मणः स्थविरस्य 'मूत्रे पष्ठ्यर्थे द्वितीया प्राकृतशैलीवशात्, 'तिक्खुत्तो' त्रि:कृत्वा त्रिवारम् आदक्षिणप्रदक्षिणम्-अञ्जलिपुटं स्वदक्षिणकर्णादारभ्य दक्षिणावर्तगोलाकारेण भ्रामयन् पुनर्दक्षिणकर्ण यावदानीय तस्य ललाटप्रदेशे स्थापनं करोति, कृत्वा 'वंदइ' वन्दते= उठा कि छठे अंग में वर्णित समस्त पदार्थों को श्रीसुधर्मास्वामी महाराज के मुखारविन्द से सुनकर मैं उनका ऐसा अवधारण करूँगा कि जिससे वे पदार्थ कालान्तर में भी नही भुलाये जा सकें।
(उठाए उट्टेइ) इस तरह श्री सुधर्मास्वामी से कुछ दूर पर बैठे हुए वे जम्बूस्वामी वहॉ से जब उठे तो झुककर के ही उठे । “उहाए" इस पद से मूत्रकार उनमें अतिशय विनय संपन्नता प्रकट करते हैं। (उद्वित्ताजेणामेव अज्जसुहम्मे तेणामेव उवागच्छइ) उठकर वे जहाँ श्री आर्यसुधर्मास्वामी विराजमान थे वहां आये । (उवागच्छित्ता अज्जसुहम्मं थेरे तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ) आकर उन्होने आर्य सुधर्मा स्थविर को तीन तार अञ्जलिपुट-बनाकर वंदन किया। "आदक्षिणप्रदक्षिण" का तात्पर्य यह हैं कि दोनों हाथों को अंजलि रूप में करके अपने दक्षिण कर्ण से लेकर उस अंजलि को गोलाकार घुमाते हुए पुनः दक्षिणकर्ण तक ले जाना और उसे फिर मस्तक पर लगाना । (करित्ता वंदइ नमसइ)
એમને એવી રીતે અવધારણા કરીશ કે તેથી તે પદાર્થનું કાળાન્તરમાં પણ વિસ્મરણ ન થઈ શકે.
(उठाए उठेइ) 0 प्रभारी श्री सुधास्वाभाथी था ६२ मे ते १५ स्वामी त्यांथी न्यारे ला थया त्यारे नभान असा थया. 'उटाए' मा ५६ ५९ सूत्रा२ तेमनामा अत्यन्त विनय संपन्नता मताचे छ. (उद्वित्ता जेणामेव अन्जमुहम्मे तेणामेव उवागच्छद) ला याने तेयो श्री सुधारवामी त्यो विरा"भान ता त्यi माव्या. (उवागच्छित्ता अज्ज सुहम्मं थेरे तिका तो आयाहिणपयाहिणं करेइ) तेगामे सावाने. साय सुधर्मा त्यविश्ने त्रशु मत मसि पूर्व प्रणाम ४ा 'आदक्षिण प्रदक्षिणमूना पथ ये थाय छ भन्ने थाने २५/લિ આકારે બનાવીને પોતાના જમણા કાનથી લઈને તે અંજલિને ગોળાકારે ફેરવતાં ફરીથી
मा ४ान सुधा सामने ५ तेने माथा ७५२ मा (करित्ता वंदह नमसइ) વંદના કરી તે પછી વાણથી સ્તુતિ કરી ફરી પાચે અંગ નમાવીને વંદન કરી