Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
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प्रस्तावना
भारतीय गणित इतिहास के जगतप्रसिद्ध गणितज्ञ महावीराचार्य के गणितसार संग्रह ग्रन्थ का पुनरुद्धार प्रोफेसर रंगाचार्य द्वारा सन् १९१२ में हुआ। इस ग्रन्थ के तीन अपूर्ण हस्तलेख उन्होंने गव्हर्नमेंट ओरिएंटल मेनस्क्रिप्टस लायब्रेरी, मद्रास में, उस समय के डी. पी. आई. श्री जी. एच. स्टुअर्ट की प्रेरणा से प्राप्त किये। उन तीन हस्तलिपियों में से एक तो' ग्रंथ की लिपि में कागज पर है, जिसमें संस्कृत टीका सहित प्रथम पांच अध्याय हैं। बाकी दो हस्तलिपियांरेताडपत्रों पर कनडी लिपि में हैं। एक ताडपत्र में प्रथम पांच अध्याय हैं, और दूसरे में सात अध्याय हैं, जिनमें क्षेत्रफलों का ज्यामितीय विधि से निरूपण है। इन दोनों हस्तलिपियों में संस्कृत में लिखा हुआ मूल ग्रंथ है, और कनड़ी भाषा में कुछ विविध उदाहरणार्थ प्रश्न तथा उन्हीं प्रश्नों के उत्तर दिये गये हैं। इस ग्रंथ का पूर्णरूपेण अंग्रेजी में अनुवाद करने के लिये प्रोफेसर रंगाचार्य ने कई जगह खोज करवाई, जिसके फल स्वरूप उन्हें कुछ और हस्तलिपियां प्राप्त हई। चौथी हस्तलिपि गव्हर्नमेंट) ओरिएंटल लायब्रेरी, मैसूर में प्राप्त हुई । यह हस्तलिपि मूल रूप में ताड़ पत्र पर किसी जैन पंडित के पास थी, जिसे कागज पर कनड़ी में उतारा गया था । इस लिपि में पूरा ग्रन्थ है, साथ में, वल्लभ द्वारा कनडी भाषा में की गई टीका भी है । वल्लभ ने उसी में लिखा है कि इसी ग्रन्थ की टीका उन्होंने तेलगू में भी की। पांचवीं हस्तलिपि,४) दक्षिण कनड़, मूडबिद्री में एक जैन मंदिर के भांडार में ताडपत्र पर कनड़ी में लिखित प्राप्त हुई । इसमें भी पूर्ण ग्रंथ है तथा कनड़ी में प्रश्न और उनके उत्तर दिये गये हैं । ग्यारहवीं सदी में राजमुंद्री के राजराजेन्द्र के शासन काल में इस ग्रंथ का अनुवाद पावलुरि मल्लण द्वारा तेलगू में हुआ, जिसकी कुछ हस्तलिपियां मद्रास की गव्हर्नमेंट ओरिएंटल मेनस्क्रिप्ट्स लायब्रेरी में हैं।
___ ग्रन्थ पढ़ने से ज्ञात होता है कि ग्रन्थकार सम्भवतः ईसा की नवीं सदी में मैसूर प्रांत के किसी कनड़ी भाग में हुए होंगे, जहां राष्ट्रकूट वंश के चक्रिका भंजन राजा अमोघवर्ष नृपतुंग') का शासन था । महावीराचार्य के कार्य का महत्व समझने के लिये गणित के विकास के इतिहास पर विहंगम दृष्टि डालना आवश्यक प्रतीत होता है। गणित के विकास में भारतीयों का कितना अंशदान था यह भी इससे स्पष्ट हो जावेगा । इस विकास विवरण कोहम केवल महावीर के काल तथा पश्चिम के देशों तक सीमित रखेंगे।
१. इस हस्तलिपि को प्रोफेसर रंगाचार्य ने "P" द्वारा अभिधानित किया है। हम भी इन्हीं संकेतों
को उपयोग में लावेंगे। २. दोनों हस्तलिपियों में साधारण लक्षण होने एवं विषय अविछादी (overlapping) न होने
के कारण इन्हें "K" द्वारा अभिधानित किया गया है। ३. इसका अभिधान "M" द्वारा किया गया है। . ४. इस हस्तलिपि को "B" द्वारा अभिधानित किया गया है। ५. अमोघवर्ष नृपतुंग के विषय में इतिहासकारों का मत है कि वे ईसा की नवीं सदी के पूर्वार्द्ध में
राजगद्दी पर बैठे। इनके विशेष परिचय के लिये नाथूराम प्रेमी का "जैन साहित्य और इतिहास" १९४२, पृ० ५१७ आदि देखिये।