Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
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समर्पण
श्री १०५ पू० क्षु० मनोहर वर्णी 'सहजानन्द'
जिन्होंने निरन्तर ज्ञान तप साधना रत हो "स्यां स्वस्मै स्वे सुखी स्वयम्" उद्घोष गीत से
संतप्त जग जीवन में चन्द्र सितारा मय
शीतल सम्यक्त्व-प्रभात
उतारा है
तथा जीवन बन्धु विनोबा भावे
- जिन्होंने सर्वोदय और भूमिदानादि रत्न दीपों से कृष्ण क्षुब्ध तम जलधि तटों पर सुप्त प्राणों के प्राणों को
जागृत रखा है
को
सादर सस्नेह