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धर्मोपदेशमाला
पाटणमां लखायेली छे, स्थूल मनोहर लिपिमां परन्तु अशुद्ध लखाएली २४७ पत्रोत्राळी आ पोथी पण उपर जणावेला तेमना संग्रहनी नं. ४९६ छे ।
आभार-प्रदर्शन
क्रमांक १, २, ५, ६ पोथीओ लांबा समय सुवी उपयोग करवा आपवा माटे विद्वर्य मुनिराज श्री पुण्यविजयजीनो, अने मुनिराज रमणिकविजयजीनो, तथा क्रमांक ३,४ पोथीओ माटे आचार्य श्रीजिनविजयजीनो, अने ते ते संस्थाना व्यवस्थापकोनो पण हुं अन्तःकरणथी आभार मानुं हुं ।
२२
उपर्युक्त ह. लि. प्रतियो उपरान्त आवश्यकसूत्र ( जिनदासगणि महत्तरनी चूर्णि हरिभद्रसूरिनी अने मलयगिरिनी वृत्ति साथे ), तथा विशेषावश्यकभाष्य ( मलधारि हेमचन्द्रसूरिनी वृत्ति साथे ), नन्दीसूत्र ( चूर्णि अने वृत्तियो साथै ), उत्तराध्ययनसूत्र ( चूर्णि अने वृत्तियो साथे ), ज्ञाताध्ययन ( वृत्ति साथै ), धर्मदासगणिनी उपदेशमाला ( सिद्धर्षि वगेरेनी वृत्तियो साथै ), हरिभद्रसूरिनो उपदेशपद ग्रन्थ ( वृत्तियो साथै ) वगेरे सम्बन्ध धरावता प्रसिद्ध सिद्धान्तादि ग्रन्थोनो उपयोग पण में आ ग्रन्थना संशोधनमां, विशेष शुद्धि माटे, पाठान्तरादि-निरीक्षण माटे, कथानकोनी तुलना करवा माटे, तथा भाषा-रचनादि-विचारणा माटे प्रसंगानुसार कर्यो छे, ते कृतज्ञताथी सहज जणावुं हुं ।
आचार्य श्रीजिनविजयजीए आ ग्रन्थना संशोधनमा धैर्य राखी पहेलेथी छेल्ले सुधी निरीक्षण कर्तुं छे, अने प्रसङ्गानुसार सूचनो कर्यां छे, तथा विद्वद्वर्य मुनिराज श्रीपुण्यविजयजीए, अने प्रसिद्ध पं. बेचरभाई आदिए आ ग्रन्थनो प्रकाशित केटलोक भाग अवकाश प्रमाणे तपासी केटलीक सूचना करो हती, तथा पाठान्तरो मेळववामां मि. महादेव अनंत जोशीए सहायता करी हती, ते सर्वनो हुं अहिं आभार मानुं हुं ।
उपसंहार
आ ग्रन्थमा सम्पादनमां एवी रीते अनेक प्रकारे यथामति शक्य प्रयत्न करवामां आव्यो छे, बनती सावधानताथी संशोधन करवामां आव्युं छे; अन्तमा शुद्धिपत्रकनी योजना करी छे, छतां मति मन्दताथी, दृष्टि-दोषथी, प्रसादयी, अथवा मुद्रणालय आदिना कारणथी कोई स्खलना रही गई होय, तो ते क्षन्तव्य गणी विद्वज्जनो सुधारी पठनपाठनादि करशे अने अम्हने सूचववा कृपा करो, एवी आशा छे !
विक्रमसंवत् २००५ माशु पंचमी, गुरु वटपद्र
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विद्वदनुचर
लालचन्द्र भगवान् गान्धी ।
पं. लालचन्द्र भगवान् गान्धी
ठे. लिंबडा पोल, बडोदरा
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