Book Title: Dharmopadeshmala Vivaran
Author(s): Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
________________
10
15
20
25
30
धर्मोपदेशमालायाम्
कय-पावो वि मणूसो मरणे संपत्त - जिण-नमोक्कारो । खविऊण पावकम्मं होइ सुरो मिंठपुरिसो व ॥ ६४ [ कृतपापोऽपि मनुष्यो मरणे सम्प्राप्तजिन - नमस्कारः । क्षपयित्वा पापकर्म भवति सुरो मेण्ठपुरुषवत् ॥ ६४ ] कथानकं प्रागुक्तम् ॥
अनिरूविऊण सम्मं जो कायवेसु वट्टए पुरिसो । सो उदयणो व बज्झइ कारिमहत्थि - हिय- नरेहिं ॥ ६५ [ अनिरूप्य सम्यग् यः कर्तव्येषु वर्तते पुरुषः ।
स उदयन इव बध्यते कारि (कृत्रि) महस्तिस्थितनरैः ॥ ६५ ] [ ९०. अनिरूपितकर्तव्ये उदयन-कथा ]
C
जहा वासवदत्ता गंधव - गहण - निमित्तं पञ्जोएण अरण्णे हत्थिणो गेण्हितो किंचिल्लिंगमय-करि-मज्झट्ठिय-पुरिसेहिं उदयणो गहिओ । जहा य वासवदत्ताए सह घडणा जाय ति । सो तीए दिट्ठो वम्महो व, तेण वि रइ व सा दिट्ठा । अण्णोष्ण-जाय - हरिसं आवडियं ताण रइ-सोक्खं । जहा य जोगंधरायणेण पइण्णा कया
"यदि तां चैव तां चैव तां चैवायतलोचनाम् ।
१६०
न हरामि नृपस्यार्थे नाहं योगन्धरायणः ॥”
जहा य वासवदत्तं हरंतेण पढियं -
" एष प्रयाति सार्थः काञ्चनमाला वसन्तकश्चैव । भद्रवती घोषवती वासवदत्ता उदयनश्च ॥"
एवं सवं सवित्थरं रिसि चरिया (ए) उवएसमाला - विवरणे य भणियं ति । ॥ उदयन - क्खाणयं 'समत्तं ॥
पर - तित्थिय - मज्झ - गओ साहू नाऊण अप्पणो निंदं ।
पर - लिंगं चिय गिण्हइ बोडिय- मज्झट्ठिय-मुणि व ॥ ६६ [ परतीर्थिकमध्यगतः साधुर्ज्ञात्वाऽऽत्मनो निन्दाम् ।
परलिङ्गमेव गृह्णाति बोटिकमध्यस्थितमुनिवत् ॥ ६६ ]
[ ९१. समयज्ञ - साधु-कथा ]
अत्थि सिरिलाडदेस- चूडामणिभूयं अणेग-दिव-च्छेरयाणुगयं सउलियाविहार-हिट्टिय-सणिहिय - पाडि हेर मुणि सुवयतित्थयर - पडिमा - विभूसियं
भरुयच्छं नाम
महानयरं ति ।
Jain Education International
१ इ. क. सं° ।
--
“पुव भव - सउलियाए सिंघल-दुहियाए कारियं तत्थ । तुंगं जिणाण भवणं नामेणं सुदंसणाए त्ति ॥ "
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296