Book Title: Dharmopadeshmala Vivaran
Author(s): Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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दुःखे धर्मकर्तृ-गन्धर्वनागदत्त-कथा । वियपिजमाणो, चाडय-सएहिं उवयरिजमाणो, सबहा अमय-णीसंदो विव सयल-लो. गाण निबुई जणेंतो जाओ अट्टवारिसिओ । पसत्थ-वासरे य समुवणीओ लेहायरियस्स । पुरभव-ज्मासाओ थेव-कालेणं चिय गहियाओ बावतरं कलाओ । कमेण य संपत्तो जोधणं । जाओ विजाहर-रमणीणं पि पत्थणिजो । गंधवे य अचत्थं वसणं, तेण से लोगेणं गंधव-नागदत्तो ति नाम कयं । अवि य
सयलम्मि वि जियलोए एकं मोत्तूण नवरि सुर-मंतिं ।
विण्णाणाइ-गुणेहिं नत्थि सरिच्छो कुमारस्स ॥ वरियाओ .य जणएण तण्णयरवासि-सस्थवाहाण सवगुणाणुगयाओ अणेगाओ बालियाओ, विवाहियाओ महाविच्छड्डेणं । एवं च जम्मंतर-सुकय-समजियं विउसयण-पसंसणिजं तिवग्ग-सुहमणुहवंतस्स सुहियण-मित्ताइ-परिवुडस्स उजाणाइसु विचित्त- " कीडाहिमहिरमंतस्स समइकंतो कोइ कालो त्ति । अवि य
"जम्मंतर-सुकय-समन्जियाई पावंति केइ सोक्खाई।।
पावेण केइ दुक्खं ता धम्म कुणह जिण-भणियं ॥" देवस्स य(प)योहिंतस्स वि न बुज्झइ । तओ चिंतियमण- 'जावाऽऽवयं न पत्तो, तावेसो न बुज्झइ' । अवि य
___ "सुखी न जानाति परस्य दुःखं न यौवनस्था गणयन्ति शीलम् ।
आपद्गता निर्गतयौवनाश्च आर्ती नरा धर्मपरा भवन्ति ॥" तओ अपत्त-वेसधारी घेत्तूण चत्तारि करंडए उजाणे अभिरमन्तस्स गंधवनागदत्तस्स समीचे मंहं पयतो । मिचेहिं पुच्छिएण कहियं देवेण- 'एते सप्पे' । तेहिं पि कहि नाणदत्तस्स-'एस सप्पे कीडावेई । वाहरिऊण भणिओ देवो-'तुमं मम । सम्पाहि रमसु, अहं पि तुह सप्पेहि' । देवेण रमाविऊण से सप्पा मुक्का । खद्धो वि न पारिओ । तओ 'विलक्खिएण भणियं नागदत्तेण- 'अहमे[ए]हिं तुह विसहरेहि रमामों। तेण भणियं- 'अचंतमीसणा मे सप्पा, न तरसि एतेहिं रमि' । पुणरुत्वं च भणंतस्स मेलिऊण भणिया से सयण-मेत्त-बंधुणो- 'वारेह नागदत्तं । जाहे तेहिं वि वारिओ न विरमद, तओ लिहिऊण मंडलं चउद्दिसिं वहिऊण करंडए कोहाइ-सारि-॥ च्छयाए सप्पे पसंसिउमाढत्तो त्ति । अवि य
गंधवनागदत्तो इत्थ सप्पेहिं खिल्लिइहइ । सो जइ कहिं वि खजह इत्थ हु दोसो न कायद्यो॥ तरुण-दिवायर-नयणो विजुलया-चंचलग्ग-जीहाओ(लो)। पोर-महाविस-दाढो उका इव पजलिय-रोसो॥ उको जेण मणूसो कयाकई वा ण जाणइ सुबहुं पि । अहिस्समाण-मनू' कह घेच्छसि तं महानागं? ॥ मेरुगिरि-तुंग-सरिसो अट्ठ-फणो जमल-जुयल-जीहालो ।
दाहिण-पासम्मि ठिओ माणेण वियदृए नागो॥ १६.क. 'पि। २ ह. क. °ओ। ३ ह.क. °च्चु ।
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