Book Title: Dharmopadeshmala Vivaran
Author(s): Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

Previous | Next

Page 286
________________ परिशिष्टम् [१] धर्मोपदेशमाला-विवरणान्तर्गतोदाहृतपद्यानां सूची । इदंसणा पीई भइनेह-गभिणाई अइसुंदरं पि भणियं शंकुसेण जहा नामो अच्छउ वा दिवलोगो अरि-निमीलिय से तं अहिवंतेणं इमीए जब पि जर्स अज्ञानं खलु कष्टम् अण्णाणो वह पूर्ण अत एव मुखं निपीयते अस्थमिए दिणना हे अस्थी कामो मोक्खो अन्न-पानैर्हरेद् बालाम् व्यथैव विचिन्त्यते सपात्रे रमते नारी अपि चण्डानिलोदूतगतिर्नाति Jain Education International अप्पा देव दमियो शभितरया खुडिया अभिचन्द्र नवसः अमरतद व वरुणं अरहंत-पक्षि-इकारअर्थनाशं मनस्तापम् अनामर्जनेश्व -सुसिर- पण-तपअवधूतां च पूच अवरोप्परं जिसे अवश्यं यौवनस्पेन अचिराहिय-सामग्र तस्स रूप- ब्रिजिलो आदावत्यभ्युदया बावासो मावसानां भासामेव नृपतिर्भजते काहार-भय-परिवाहशाहातो भगवं लय सुर पृष्ठे ४० इंदिय-लद्धी नेवत्तणा य ४४ इय देव ! समण - बंभण१७३ इह खलु भो ! पन्चइए (गद्य) ५० ४५ इह होए अस्थ- कामा ४४ इह लोए फलमिणमो २४७ उपकारिणि विश्रब्धे ११५ उपदेशो हि मूर्खाणाम् २१० उवभुंजद्द य जहिच्छं ५१ उवरोहयाए कर्ज कीरह ५१ उवरोहयाए की रह १८० | उसमे हणे कोवं ३७ एगम्मि महारुक्खे ४७- एत्तिय कालं परिरक्खिऊण १९१,२१७ | एयाहं ताइं चिर-चिंतियाई १०२ एष प्रयाति सार्थः २१६ | कत्थ जय पायड· जसा १३५,२२० | कथं संबोध्यते स्थाणुः ? ५३ | कय-पावो वि मणूसो ८४ कय- पूया-सकारो ७ कर छाइय- गुझे ? ३७ | कलहकरो डमरकरो १९६ | कश्चिदू रागी भवति कारूण नमोक्कारं ५८ की पाति न्यायतो राजा ? १४ | काम ! जानामि ते मूलम् १७१ | कामः शोक- भमोन्माद ७१ ४३ कालिया दलितेन्द्रनील६२, ११२ काले दिवस पणयस्स पृष्ठे ३७ कुल जलनिहिणो वुडिं १७२ कुवियरस आउरस्त य ६४ ५१ किं जंपिएण बहुणा ? ३४ किं ताए नाण- लच्छीए ? ९० किं ताए सिरीए पराए ? ८७ कुप्रामवासः कुनरेन्द्र सेवा १३५ कुमारेण कंचणगिरी कुसुमाहरण- विलेवण ६२ कृमिकुलचितं कालावि १७९ केसरि सुत्नं च लब्बो ७९ १७४ १७४ ४४ १७३ | कोऽर्थान् प्राप्य न गर्वितः ? १०३ १२५ कोहो य माणो य भणि७४ क्रोधः परितापकरः १७३ खज्जउ जं वा तं वा १३५ | खोड्डाइएहिं पंचहिं ११३ | गंगाए नाविभो नंदो १७४ गणयन्ति न रूपायं ८४ गणिमं धरिमं मेयं १८२ गरुअ-पओहर११५ ६६ गह-भूय-जळण-तक्कर १६० गिन्हह दोसे वि गुणे १९२ गुण-दोसे णावेक्खइ ४३ घंमा वंसा सेला ५२ चक्षुष्मन्तस्त एवेह चत्तारि परमंगाणि १७४ ५२ २०९ १७१ १४ ४३ ६५ २०० १९० १७७ ३३ ८२ काले प्रसुप्तस्य जनार्दनस्य ४७ किं चन्द्रेण महोदधेरुपकृतम् ? जस्थ तरुणो महल्लो जरथ राया सयं चोरो जन्म जन्म यदद्भ्यां जं भजिअ चरितं जं अण्णाणी कम्मं खवेड़ जमहं दिया य राम्रो १९७ | जं कहिऊण न तीरह १७३ जं पिय वत्थं व पार्य वा १४६ जम्मंतर-कय-पावा ५८ जम्मंतर - सुकय- समलियाई ४३ जले विष्णुः स्थले विष्णुः ८७ |जह चोलयाइएहिं चालिय-नी से साचलचोलग पासगधपणे For Private & Personal Use Only जई फुल्ला कणियारया जत्तियमित्तो संगो २९ १३० १५२ १० २०९ ५० १५७ १७२ १७३ ६५ २०८ 8% ४४ १६५ 990 १७ ६१ १२३ ३०६ 翼 १८५ १७४,१८६ 16$ ८३ ४५ * २२१ १८१ २०* www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296