Book Title: Dharmopadeshmala Vivaran
Author(s): Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 259
________________ २०४ धर्मोपदेशमालायाम खुड्डगस्स उप्पत्तिया । [९] बिइओ। निहिम्मि दिढे महिलं परिक्खइ 'रहस्सारिहा न व ति । 'न तए कस्स वि कहेयवं- 'मम अवाणेण पंड(डु)र-वण्णो कायो पविट्ठो' । तीए वयंसियाए : सिटुं । परंपरेण राइणा सुयं । हकारिओ वणिओ । सम्भावे सिढे दिण्णो से निही । वणियस्स उप्पत्तिया। [१०] तइओ । विलु विक्खिरंतं दट्टण पुच्छिओ भ(भा)गयेण खुडओ-'फिमेसो निरूवेइ ?'। खुड्डएण भणियं-'विण्डं निहालेइ सब-गयत्तणओ। "जले विष्णुः स्थले विष्णुराकाशे विष्णु-मालिनि । विष्णुमालाकुले लोके नास्ति किश्चिदवैष्णवम् ॥" खुडयस्स उप्पत्तिया। [११] उच्चारे त्ति । जहा एगो दिओ भजाए सह वच्चइ गामंतरम्मि । धुत्तम्मि अणुरत्ताए 1 निच्छूढो भत्तारो । कारि(र)णियाण पुरओ ववहारो लग्गो । दिएण भणियं- 'ममेसा भजा, नवरमेयस्साणुरत्ता' । 'किं भे संबलं ? । दिएण भणियं-'तिल-मोयगा । तिण्हं पि दिण्णं विरेयणं । तओ विड-निरूवणेण निच्छूढो धुत्तो । कारणियाण उप्पत्तिया । [१२] गय त्ति । जहा वसंतउरे राया भणइ- 'जो हत्थि तोलेइ, तस्स लक्खं देमि' । ० एगेण नावाए हत्थि काऊणं नावा · अत्थाह-जले वूढा, रेहा य कया । तओ कड्डिऊणं नावं कट्ठ-लोहाईणि भरिऊण बूढा पुणो वि । तोलिएहिं य कट्ठाईहिं नायं परिमाणं । तस्स उप्पत्तिया बुद्धी। [१३] घयणो त्ति । जहा एगो गायण-भंडो राइणो रहस्सिओ । तस्स पुरओ राया देवि वण्णेइ जहा निसण्ण(राम)या। भंडो भणइ- 'मा एवं भणसु, नवरं जाए वेलाए सा वायमोक्खं करेइ, ताए वेलाए पुप्फ-गंधे वा देई । एवं जाणिऊण दिती न गहियं पुर्फ, तओ वाउ-गंधे समुच्छलिए हसियं राइणा, विलिया देवी, रुट्ठा भंडस्स, आणतो निविसओ । तओ दीहर-वंसमुवाहणाणि भरेऊण पयट्टो देवि-दंसणथं । तीए (तेण) भणियं- 'अणेगा[णि] देसंतराणि गंतवाणि, इमिणा निमित्तेण तेणोवाहणाओ गहियाउ' त्ति । 'मा देसंतरेसु एसो साहेस्सई' ति लजंतीए धरिओ भंडो । घयणस्स उप्पत्तिया । [१४] गोलय त्ति । जहा जउमय-गोलओ नासाए पविट्ठो । तत्थ(त्त)-सलागाए कहि ओ। कड्डयंतस्स उप्पत्तिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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