Book Title: Dharmopadeshmala Vivaran
Author(s): Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 219
________________ 5 10 १६४ 20 धर्मोपदेशमालायाम् पायड - गुणाई दूरं सहियय-जण - जणिय- हसिय-तोसाईं । चरियाई व जस्स सुभासियाई वेति लोएहिं ॥ निविय सयल - दोसा पयासियासेस-पयड- परमत्था । पसरंति जस्स दूरं कवाबंधा रवि-कर व ॥ सो कालंतरेण य पुणो वि पसूया चोदस महासुमिणय-पिसुणियं जाला सुरकुमर - संकासं दारयं । कयं महावद्भावणयं । पइट्टियं से नामं महापउमो त्ति ! देव-परिगहिओ वढतो तत्थ जुवणं पत्तो । निय-कर- पडिवन्न-धरो उदयत्थो दियहनाहो व || भमिउ वायाए दढं सुहव - पुरिसो व दूरमवगूढो । पायड - गुणावलीए दयाए व सुकय-पुण्णो व ॥ सुविसुद्धा जरा थवरा (ला) चिहुर व जस्स कीरंति । कव कहाए पुरिसा अण्णाण - कलंक करिणा वि ।। अण्णा अणेग-सीस-परिवारो समोसरिओ बाहिरुजाणे सुवयाहिणामो महामुणी । जो य, भूसणं तव - सिरीए, निलओ विरागयाए, कण्णाहरणं नाणलच्छीए, कुलमंदिरं 15 खंतीए, निवासो दयाए, जलनिही गुण-रयण-विभूईए, पुण्णखित्तं अपरिग्गहियाए ति । अवि य - समुक्खाय सल्लो महामोहम (स)ल्लो । गुणाणं सुपल्लो मुणीणं महल्लो || तओ सरिसय संपत्तो राया सह विण्हुकुमार - महापउमेहिं । पत्ता नागरया | भगवया विसमादत्ता धम्मकह त्ति । जेण देवाणुपिया ! असारो संसारो, दारुवा नरया; अहदुविसहाओ तेसु वियणाओ, विचित्ता कम्म-परिण[ई]ओ, समुच्छलंति रागाइणी, अणवदियं मणं, चंचला इंदियतुरंगमा, किंपागफलोपमा विसया, दारुणो पिय-विप्पओगो, दुरंतो वम्महो, नरयसोवाण - भूयाओ इत्थीओ, असासयं जीवियं, समासणं मरणं, वंचणा-परा पाणिणो, 25 कसायानल - संतत्तं जगं, असुंदरी घर-वासो, न सुलहं मणुयत्तं, दुल्लहा धम्म-पडिवत्ती, बहुविग्धं दियहं चंचला रिद्धी, सुविणोवमं पेमं, दुल्लहा आरियखेत्ताई - संपया, मिच्छत्त- मूढो जणो, दारुणमण्णाणं, निंदिओ पाओ, परिहार्यंति भावा, श्रेणीहोंति आगयाई, अप्प - विरियाओ ओसहीओ, काम-भोगाउरा लोगा, सहा, किं बहुणा १ न मोक्ख सोक्खाहिंतो अण्णं सुहमत्थि त्ति । अवि य "धम्माउ चिय जम्हा अत्थाईया हवंति पुरिसत्था । ता सो चिय कायवो विसेसओ मोक्ख कामेहिं ॥" Jain Education International "नारय - तिरिय - नरामर गईसु नीसेस- दुक्ख-तवियाण । मोण सिद्धि-सहिं जियाण सरणं न पेच्छामि ॥ " तओ हियय-द्विय-चित्त-परिणामेण विण्णत्तो गुरू पउमुत्तरराइणा - 'भयवं ! जाव विण्डुकुमारं रजे अहिसिंचामि ताव मे पाय-मूले सफलीकरेमि करि-कण्ण- चंचलं मणुयचणं पद्मजाणुट्ठाणेण । भगवया भणियं - 'देवाणुपिया ! काय मिणमो For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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