Book Title: Dharmopadeshmala Vivaran
Author(s): Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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सङ्घ गुरुकार्य शक्तिप्रकटने विष्णुकुमार-कथा ।
१६३ जो य, दिवसारंभो व अणुप्रतिष-मित्त-मंडलो भुवनभुव इंदफलानिवहो व समुव्बूढ-महि-वेढो, कमलापरो व जयलच्छि-समहिडिओ त्ति । अवि य
निवावेंति गुण चिय सयलं महिमंडलं जए पयडा । एमेव य पडिवनं मियंक-किरणेहिं महिवेढं ॥ अह पाव विलसिथं दणुयनाह-हिययं व पुरिससीहस्स।
जस-पब्भारेहिं दढं नक्खेहिं व दूर विणिभिन्नं ।। तस्स य राइणो सयलंतेउर पहाणा जालाभिहाणा पिययमा । जा य, उजाण-दीहिया विव विसट्ठ-कंदोट्ट-नयण-रेहिरा, कुरुवइ-सेगावइ व सण्णिहिय-कण्णाहरणा, हेमंतसिरी विव रो(रे)हंत-तिलया, सिसिर-लच्छी विव वियसिय-कुंद-दसण त्ति । अवि य-चंदस्स चंदिमा विव अहवा परिगलइ सा वि गोसम्मि ।
एसा उण नरवइणो न गलइ छाहि व तद्दियहं ॥ मयणारिणो व गोरी अहवा परिवसइ सा वि देहद्धे ।
एसा पुण निय-पइणो निवसइ सबम्मि देहम्मि ॥ एवं च राइणो तीए सह जम्भंतर-समत्थि(जि)य-पुण्णाणुभाव-जणियं बहुजण-पसंसणिज्जं तिवग्ग-सारं जीयलोग-हमणुहवंतस्स समइकंतो कोइ कालो । अण्णया उच्छं-15 ग-गयं सीहं दट्टण पडिवुद्धा जाल ति । अवि य--
खंध-ट्ठिय-पंजर-केसरोह मुह-कुहर-भासुरं धवलं ।
तडि-घडिय-सरय-नीरावहं व पुलएइ मयनाहं॥ साहियं पय(इ)णो । तेणावि मुणिय-सत्थाणुसारेणानि(नं)दिया पहाण-पुत्त-जम्मेण । अव(वि)माणिय-डोहला य संपुण्ण-समए पस्या देवकुमारोवमं दारयं । वद्धाविओ राया 20 पियंकरियाए चेडीए । दिण्णं से पारिओसियं । पइट्ठियं दारयस्स नामं विण्हुकुमारो। वडिओ देहोवचएणं, कला-कलावेण य । संपत्तो सयल-जण-सलाहणिज्जं जोवणं ति । अवि य-जयलच्छि-परिग्गहिओ पय-मग्ग-फुरंत-मीण-संसउलो ।
___ कमलायर-सारिच्छो रेहइ कुमरो ग्धबिं(मि)दु व ॥ जस्स य, कुडिला चिहुरा, ण सहावा; वित्थरियं वच्छत्थलं, न कडुअं भणियं; 25 तणुओ मज्झदेसो, न हीण-विलासो; भयरद्धय-धणु-कुडिलाओ भमुहाओ, न बुद्धीओ; अइदीहरा भुया-दंडा, न घेराणुबंधा; परिच्चाओ समजिय-विहवस्स, न चरियस्स; अचंतपरिचिआओ कलाओ, न भायाओ; पायडाणि बुहजण-पसंसणिजाणि गुण-विजाणि, न चारपुरिस-जंपियाई; भंगुरा दइया-पणयकलह-कोवा, न महासेण-जोह त्ति । अवि य-जल-संसग्गि-वियंभिय-कमलाण व दुजणाण मुह-सोहं ।
विमला वि हु जस्स कहा मियंक जोण्ह छ मइलेइ ।।
. १. तमीण°।
२ क. कमरओ ।
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