Book Title: Dharmopadeshmala Vivaran
Author(s): Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 223
________________ 6 30 15 20 25 30 १६८ धर्मोपदेशमालायाम् [ ६ ] काले कालण्णाणं गन्भहराणं च तीसु वासेसु । सिप्प - सयं कम्माणि य तिष्णि पयाए हियकराणि ॥ [ ७ ] लोहाण य उप्पत्ती होइ महाकाल आगराणं च । रुष्पस्स सुवण्णस्स य मणि - मोत्ति - सिला - पत्रालस्स || [ ८ ] सेसाण य उपपत्ती आवरणाणं च पहरणाणं च । सवा इ दंडनीई माणवगे रायनीई य || [९] नट्टविहिनागविही कवस्स चउविहस्स उप्पत्ती । संखे महानिहिम्मिय तुडि (रि) यंगाणं च सवेसिं ॥ चक्कट्ठ-पइडाणा अडस्सेहा य नव यभो । बारस दीहा मंजूस - संठिया जान्हवीय मुहे । वेरुलिय- मणिकवाडा कणगमा विविह-रयण- पडिपुण्णा । ससि-सूर-चक्क - लक्खण- अणुराय-वयणोवसत्तीए ॥ पलिओम-ट्टिईया निहि- सरिसा नाम तेसु खलु देवा । तेसिं ते आवासा सुकीलया हीवच्छाया ॥ एएते व हिओ (हिणो) पभूय- घण-कणग-रयण- पडिपुण्णा । जे वसमणुवन्ति सवेसिं मणुयाल || नवजोयण-वित्थिष्णा नव निहिओ अनुजोयणुस्सेहा । बारसजोयण - दीहा हिय-इच्छिय-रण-संपुण्णा ॥ Jain Education International चक्काइयाणि चोदस रयणाणि हवंति चक्किणो तस्स । नामेण सरूवेण य अहकमं कित्तइस्सामो ॥ [१] अरय - सहस्साणुगयं पयन्नधारं फुडंत-रवि-सरिसं । चक्कं रिउ-चकहरं दिवममोहं रयण-चित्त ॥ [२] निद्दलिय सङ्घरोगं लोइय-गयणं मियंक - बिंबं व । उद्दंड - पुंडरीयं दिवमिणं दुइयरयणं से || [३] दरियारि - मत्तमायंग-कुंभ - निद्दलण-पञ्चलं दिवं । जम- जीह - तिक्ख धारं रयण-विचित्तं सहइ स्वग्गं ॥ [ ४ ] निम्मुण्णय - समकरणं पर-वल-निदलण- पचलं दिवं । दंडरयणं विराय अहिट्टियं जक्ख- निवहेण ॥ [ ५ ] चम्मरयणं अभेजं सजण-चित्तं व जणिय-जय-हरिसं । संठाइय- धरणियलं खुपसत्थं सहइ चकिस्स || [ ६ ] चिंतामणि- संकासं मणिरयणं सीस-रोग-निदलणं' । 'विष्फुरिय-किरण- निद्दलिय - बहल-तम- तिमिर - निउरंबं ॥ [ ७ ] निय-कंति तुलिय- ससि - सूर - तेथे पाय डिय - नहयलाभोगं । दिवं कागणिरयणं लंछिय-करि तुरग पाइकं ॥ १. निवणं । क. तेयं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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