Book Title: Dharmopadeshmala Vivaran
Author(s): Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 182
________________ १२७ पुनर्मर्यादाधारणे नन्दिषेणमुनि-कथा । "यं दृष्ट्वा वर्धते क्रोधः स्नेहश्च परिहीयते । स विज्ञेयो मनुष्येण एष मे पूर्ववैरिकः ॥ यं दृष्ट्वा वर्धते स्नेहः क्रोधश्च परिहीयते । स विज्ञेयो मनुष्येण एष मे पूर्वबान्धवः ॥" "नयणाई नूण जाई-सराणि वियसंति वहहं दटुं। कमलाई व रवि-यर-बोहियाई मउलेंति वेसम्मि ॥" वित्थरेण सम्मत्त-मूले परूविए मुणि-धम्ने वेरग्ग-मग्गावडिओ पवइओ गंगदत्तो। त्ति । कालंतरेण य भाइ-नेहेण रायललिओ वि । तओ तव-सोसिय-सरीरा दुविह-सिक्खसिक्खाविय-पाणिणो पंच-समिया तिगुत्ता गुत्तभयारिणो विहरिऊण उज्जय-विहारेणं । मरण-काले भणियं गंगदत्तेण - 'जइ इमस्स तवस्स फलमत्थि, मणुयत्ते सयल-जण-नयणाणंदो होजा' । मओ समाणो गओ देवलोगं गंगदत्त-मुणी । रायललिओ वि, नवरमकय-नियाणो त्ति । तत्तो वि चुया समाणा जाया दसम-दसारस्स वसुदेवाहिहाणस्स ।। रोहिणी-देवई-तणया बलदेव-वासुदेवा । सेस-क्खाणयमागमानु(णु)सारेण भावेयवं । उवणओ कायबो। ॥ नवमवासुदेव-क्खाणयं समत्तं ॥ -- [४९. पुनर्मर्यादाधारणे नन्दिषेणमुनि-कथा] - कम्म-वसेणं मुणिणो जइ कह वि मुयंति नियय-मज्जायं । पुणरवि धरेंति ते चिय निदरिसणं नंदिसेणेण ॥ ३५ [कर्म-वशेन मुनयो यदि कथमपि मुञ्चन्ति निज-मर्यादाम् । पुनरपि धारयन्ति त एव निदर्शनं नन्दिसेने(षेणे)न ॥ ३५] रायगिहे सेणिय-सुओ नंदिसेणो जाय-संवेगो वारिजंतो वि अइसय-नाणीहि । देवयाए पवईओ । गहिय-दुविह-सिक्खो गोयर-चरियाए भमंतो अणाभोगेण पविट्ठो वेसा-मंदिरं । धम्मलाभ-पुवयं च ठिओ से प(पु)रओ । सहासं च भणियं वेसाए'महरिसि! दम्म-लाभेण कज्ज । 'अबो! कहमेयाए अहं हसिओ?" भावेंतेण सरणाउ तणं कड्डिऊण पाडिया रयण-वुट्ठी । भणियं च णेण- एसो मे दम्म-लाभो । 'अबो! अक्खओ एस महप्पा निही, ता क्खोहेमि' त्ति भावंतीए भणिओ गणियाए सपरिहासं'भाडं दाऊण मा अण्णत्थ वचसु' । अणुकूलोवसग्गेहिं उवसग्गिमाणस्स चलियं संजमाउ से चित्तं । अवि य नेस्सास-कडक्ख-पलोइएहिं हसिएहिं विलसिएहिं च । तत्त-तवस्स वि मुणिणो गिरि-सरिसं चालियं चित्तं ॥ नारय-तिरिय-नरामर-गईसु अट्ठविह-कम्म-मइलस्स । तं नत्थि संविहाणं जं संसारे न संभवइ । भाविय-मई वि, तव-सोसिओ वि, विण्णाय-विसय-संगो वि । कम्म-वसेणं चलिओ मेरु-सरिच्छो वि नियमाओ। ११. क. ज.सं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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