Book Title: Dharmopadeshmala Vivaran
Author(s): Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 212
________________ वोधे इन्द्रनाग-कथा । "नवि दड ( ढं) बाहिंति ममं दारिद्दाईणि तिव्व- दुक्खाणि । निअ - वास- परिभवो जह नरयाणल- विब्भमो दूरं ॥" अण्ण - दियहम्मि पयट्टो सिद्धत्थ-सत्थवाहेण सह रायगिहं ति । "गणिमं धरिमं मेयं पारिच्छं एवमाइयं भंडं । घेणं लाहडी जो वच्चइ अण्णदेसम्मि || निव-सम्म बहुमओ दीणाणाहाण वच्छलो लोए । सो सत्थवाहनामं घणु व लोए समुवहइ ||" तओ करें तो परत्थ - संपाडणं, निरूवंतो सुहिय- दुहिए, पयतो | इंदनागो वि अवत्त-वेसधारी गओ से आवासे घय-गुल - सारो पिंडो ति । अवि य - " वड्डिय - नयणाणंदो स-सुगंधो नेह संगओ महुरो । पियका मणि - देहो विव संपत्तो तेण सो पिंडो ॥ " १५७ तो महाणुभावत्तणं गंतुं भिक्खाए । दवाविओ Jain Education International दुवओगेण य पत्तो तइय-वासरे । सत्थाहेण चिंतियं - नूणमेगंतरियाओ जेमेइ, तैण कलं न आगओ । तओ अच्चंत - नेहावगाढो दवाविओ पुणो वि पिंडो । तदुवओगेण य छट्ठोववासो पत्तो से वसहिं । 'अहो ! महाणुभावो एस तबस्सी' भाव - सारं 15 पण मऊण पडिलाभिओ विचित्ताहारेण । तदुवओगेण य पत्तो चउत्थ- दिवसाओ । एवं जाव मासखमगो जाओ । तओ भणिओ सत्थवाहेण - 'जाव पुरं न पत्तो, तात्र मम गेहाओ नण्णत्थ भिक्खट्टा गंतवं । कमेण य पत्तो रायगिहं । कराविओ निययघरासने मढो सत्थवाहेण । तओ मुंडाविऊण सीसं नियंसियाणि कासाय- वत्थाणि । जाओ लोय - विक्खाओ । जणवओ य परम-भत्तीए अण्ण- पाण-वत्थोसहाईहिं उवयरिउमाढतो । जद्दिवसं च पारेइ, तद्दिवसं सद्यो वि लोगो गहियाहारो दुबार-डिओ पडिवातो चिट्ठइ । एकस्स भोयणे गहिए सेता ( सा ) नियतंति । अओ सेस- लोगजाणणत्थं भोयणे गहिए भेरी वादिज्जइ, सोऊण से सदं लोगा नियत्तंति । एवं वच्चंते काले, अण्णया समुप्पण्ण- केवलनाणो चोदस - समण सहस्साणुगम्ममाणो समोसरिओ गुणसिलए उज्जाणे वद्धमाणसामी । कयं देवेहिं समोसरणं । वद्धाविओ सेणिओ 25 तित्थगरागमणेण य निउत्त - पुरिसेहिं । समुप्पण्ण- हरिसेण य दवावियं तेण महादाणं । पयट्टो महाविच्छड्डेणं भगवओ वंदण-वडियाए । पत्तो समोसरणं । वंदिओ अणाचिक्खणीयमाणंद - सुहमणुहवंतेण तित्थयरो सहाभया [इ] एहिं । अवि य "तं किं पि अणण्ण- समं सोक्खं तस्सासि जिणवरे दिट्ठे । जं कहिऊण न तीरइ सारिच्छं निरुत्रम सुहेण ॥" तेलोक - दिवायरेण वि समाढत्ता सजल - जलहराणुकारिणीए सव - सत्त-निय - निय-भासा परिणाम - परिणामिणीए आनंदिय-तिलुक्काए वाणीए धम्मका । परूवियाणि असार-संसार - निबंधणाणि मिच्छत्ताविरइ-पमाय - कसाय - जोगाईणि । दावियाणि य मोक्खकारणाणि य सम्मत्त-नाण चरणाणि । तओ मुणिय-जहट्ठिय-संसारासाररूवा जाया For Private & Personal Use Only 10 20 32 www.jainelibrary.org

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