Book Title: Dharmopadeshmala Vivaran
Author(s): Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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१४८
धर्मोपदेशमालायाम् "सुहु वि जियासु सुट्ठ वि पियासु सुट्ट वि य लद्ध-पसरासु । अडवीसु महिलियासु' उ वीसंभो नेय कायव्वो ॥ रज्जावेंति न रजति ति हिययाइं न उण अप्पेंति ।
छप्पण्णय-बुद्धीओ जुर्वईओ दो वि सरिसाओ ॥" ता नेवाणत्थिणा परिहरियवाउ त्ति, एसो धम्मोवएसो त्ति ।
सुयदेवि-पसाएर्ण दियवर-तणयस्स साहियं चरियं । भावेमाणो सम्मं जुबईसु विरञ्जर जीयो ।
॥दियवरतणय-कवाणयं समत्तं ॥
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सीहगिरी विव सीसे इच्छाए संठिए णिसेविज्जा । आणाए अवटुंते कालकसूरि व्य मुच्चेज्जा ॥ ५८ [सिंहगिरिरिव शिष्यानिच्छायां संस्थितान् निषेवेत ।
आज्ञायामवर्तमानान् कालकसूरिरिव मुञ्चेत् ॥ ५८] वइरखुड्डय-गुण-जाणणत्थं सीहगिरिणा साहुणो भणिया- 'मए गामंतरं गंतवं, एस ते(मे) वइरखुड्डओ वायणायरिउ ति । अवि य
"गुण-जेट्टेण वि लहुओ गुरुणो वयणाउ इच्छिओ वयरो। सुंदरमसुंदरं वा गुरुणो चिय जेण जाणंति ॥ सीहगिरि-सुसीसाणं भदं गुरु-वयण-सद्दहंताणं ।
वइरो किर दाही वायण त्ति न विकोवियं वयणं ॥" सवित्थरमिमं [७९ ] अक्खाणयं उवएसमाला-विवरणाओ नायवं । अओ एवंविहे ० सीसे गिण्हेज, एसो उवणओ।।
॥सीहगिरि-क्खाणयं समत्तं ॥ -> [ ८०. कुशिष्य-त्यागे कालकसूरि-कथा] - दुइयमक्खाणयं भण्णइ
अणेग-जिणभवण-विभूसियाए तियसपुरि-विब्भमाय(ए) उजेणीए नयरीए अणेगसिस्सगण-परिवारो सुबहुस्सुओ कालगो नाम सूरी । जो य, दिवायरो अण्णाण-तमंधयारस्स, कुलमंदिरं नाणलच्छीए, संकेय-ट्ठाणं तवसिरीए, जलनिही गुण-रयणाणं, पाउस-घणो कोवानल-तवियाणं, कप्पपायवो सउणाणं ति । अवि य
"निय-वयण-किरण-बोहिय-भविय-महाकमल-संड-दिणनाहो। दहव्व-दिट्ठ-सारो कालयसूरी सुरगुरु ॥ सीमंधर-वयणाओ निओय-कहणेण रक्खियजो छ ।
कालयसरी वि दढं सविम्हयं वंदिओ हरिणा ॥" १ ह. क. “याओ। २ ह. क. सं। ३ ह. क. °णो।
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