Book Title: Dharmopadeshmala Vivaran
Author(s): Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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२४०
धर्मोपदेशमालायाम् अच्चंत-पाव-भीरू रज्जं न लयंति दीयमाणं पि । अभय-महासाला इव जिणसासण-भाविय-मईया ॥ ५१ [अत्यन्त-पापभीरवो राज्यं न लान्ति दीयमानमपि ।
अभय-महासा(शा)लाविव जिनशासन-भावित-शरीरौ(मतिको)॥ ५१] । जहा अभयकुमारेण सेणिएण दिजंत-रजं न पडिवन्नं, महासालेण य दिजंतं न पडिवनं पाव-निबंधणं ति काउं, तहा कायवं [७०-७१] ।
॥ अभय-महा[साल]-क्वाणयं 'समत्तं ।। कालाणुरूव-किरियं सुयाणुसारेण कुरु जहा-जोगं । जह केसिगणहरेणं गोयम-गणहारिणो विहिया ॥ ५२
[कालानुरूप-क्रियां श्रुतानुसारेण कुरुष्व यथा-योगम् ।।
__ यथा केसि (शि)गणधरेण गौतमगणधारिणो विहिता ॥ ५२] कालानुरूप-क्रियां पञ्चमहाव्रतादिलक्षणामागमानुसारेण यथा गौतम-समीपे पार्श्वनाथीयकेसि(शि)गणधरेण कृतेति ।।
→ [७२. कालोचितक्रियायां केशिगणधर-कथा]--- 15 तं जहा- पाससामिणो तेवीसइम-तित्थयरस्स केसिनामो अणेग-सीस-गण-परिवारो ससुरासुर-नरिंद-पणय-पय-पंकओ बोहिंतो भव-कमलायरे, नासिंतो मिच्छत्तमन्धयारं, अवणेतो मोह-निदं, मासकप्पेण विहरमाणो समोसरिओ सावत्थीए नयरीए मुणि-गणपाओगे फासुए तिंदुगाहिहाणे उजाणे । विउरुवियं तियसेहिं दिवमचंत-मणाभिरामं कंचण-सयवत्तं । ठिओ तत्थ । समाढत्ता धम्म-कहा । संपत्ता देव-दाणव-नरिंदाइणो 20 सि । अवि य
तियसासुर-नय-चलणो धम्म साहेइ गणहरो केसी । दट्टत्व-दिट्ठ-सारो मोक्ख-फलं सत्व-सत्ताणं ॥ तीए चिय नयरीए उजाणे कोट्टगम्मि वीरस्स । सीसो गोयमगोत्तो समोसढो इंदभूइ ति ।। कंचण-पउम-निसण्णो धम्म साहेइ सो वि सत्ताण । पुवावराविरुद्धं पमाण-नय-हेउ-सय-कलियं ॥ नाणाविह-वत्थ-धरा सीसा केसिस्स सियवड-समया।
गोयम-गणहर-सीसा मिलिया एगत्थ चिंतंति ॥ अवो ! मोक्ख-कजे साहेयवे किं पुण कारणं पास-सामिणा चत्तारि महव्वयाणि * निद्दिवाणि ?, कारण-जाए य पडिकमणं ? । अण्णस्स मुणिणो कयमण्णस्स कप्पइ । नाणाविह-वत्थ-गहणं, सामाइय-संजमाईणि य । कीस वद्धमाणसामिणा पंच महव्वयाणि, उभयकाल-पडिक्कमणमवस्सं, सियवत्थ-गहणं, एगस्स मुणिणो कयं आहाकम्माइ सवेसि न कप्पणिजं सेञ्जायरपिंड-विवजं, सामाइयं छेदोवस्था[व]णाईणि ति? । १ ह. क. ज. सं। २ क. ज. °कम्म°। ३ क. भूयं ।
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