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प्रस्तावना
[२] क. आ संज्ञाथी सूचवेली पोथी, प्रवर्तक मुनिराज श्रीकान्तिविजयजीना शास्त्रसंग्रहनी, वडोदराना जैनज्ञानमन्दिरनी छे । ते १२"x४३" इंच लंबाई, पहोळाइवाला कागळो पर लखाएली छे, छतां सोमसुन्दरसूरिना समयमां-पन्नरमी सदीमा लखाएली प्राचीन जणाय छे. तेना प्रथम पत्र उपर लाल श्याहीथी करेलु नन्द्यावर्तनुं मांगलिक चिह्न छे, अने प्रत्येक पत्रमा पहेली बाजू गध्यमा १ लाल चन्द्राकार तिलक, अने बीजी बाजू ३ लाल तिलकोनी निशानी छ । लखावनारे आ पहेला अनेक ग्रन्थो आवी रीते एक ज लेखकद्वारा लखाव्या हशे, तेम सूचवती आ पोथीमां चालु पत्र-संख्या १३६८ थी १४४७ जणाववामां आवी छे, तथा आ ग्रन्थ पूरती जूदी पत्र-संख्या १ थी ८० जणावेल छे, जमणी बाजू ताडपत्रीय पोथी प्रमाणे प्राचीन लिपिमां सांकेतिक अक्षरोमां पण तेनुं सूचन छे, पडीमात्रामा मनोहर अक्षरोमां शुद्धाशुद्ध लखाएली आ पोथीमा प्रत्येक पत्रमां, बंने बाजूनी मळीने ३२ पंक्तियो, अने प्रयेक पंक्तिमा प्रायः ७२ अक्षरोनो समावेश करेलो छ । तेना छेल्ला पत्रनी प्रतिकृति ( फॉटो) करावी अहिं दर्शावेल छ ।
[३] ज. आ संज्ञावाळी पोथी, श्रीजिनविजयजी द्वारा जेसलमेरथी आवेली छे, ते कागळो पर स्थूल अक्षरोमां लखायेली छे। लंबाई एक वेंत अने सात आंगळ, तथा पहोळाई सात आंगळ, इंच १३४५ पत्र-संख्या १४३ छे । वधारे अशुद्ध छे । तेना प्रत्येक पत्रमा बंने बाजूनी मळी २६ पंक्तियो छे, प्रत्येक पंक्तिमा प्रायः ४८ अक्षरो छे । श्याहीमां गुंदर वधारे होवाथी तेनां पानां एक बीजा साथे चोंटी जाय छे, बहु संभाळथी तेनो उपयोग करवामां आव्यो छे. तेनां ९१ पत्रो ज प्रथम मळ्यां हता, ग्रन्थनी प्रकाशननी समाप्तिना समये बाकीनां पानां पण जोवा मळ्यां हतां । पोथीना अंतमां जूदी जणाती लिपिमा लखवानो संवत १६७७ वगेरे जणावनारी अशुद्ध पंक्ति, पृ. २३० नी टिप्पनीमा अम्हे प्रकट करी छे । जेसलमेर(मारवाड )ना भंडारोनी वर्णनात्मक ग्रन्थ-सूची [ गा. ओ. सिरिन नं. २१, पृ. १३, ५३ ] मां अम्हे आ पोथीने त्यांना तपागच्छना उपाश्रयना भंडारमा रहेली जणावी छ ।
[४] प. आ संज्ञा अम्हे पुण्यपत्तन( पूना )ना भांडारकर ओरिएन्टल रिसर्च इन्स्टिट्यूटनी पोथी माटे सूचवेल छे । प्रारंभनां २ पत्र विनानी पत्र ३ थी ९९ वाळी कागळो पर लखायेली ते पोथी बहु अशुद्ध होवाथी अने श्रीजिनविजयजी पासे त्यांथी मागणी आववाथी जल्दी पाछी मोकलावी आपी हती, एथी ते बहु उपयोगी थइ नथी ।
[५] आ उपरान्त, धर्मोपदेशमालाना सं. ११९१ मा विजयसिंहसूरिए रचेल विस्तृत प्राकृत कथाओवाळा १४४७१ श्लोक-प्रमाणवाळा बीजा विवरणनी आधुनिक लखायेली अशुद्ध पोथीनो पण आमां प्रसंगानुसार उपयोग कर्यो छे, ते २९९ पत्रवाळी पोथी, वडोदराना जैनज्ञानमंदिरनी, मुनिराज श्रीहंस विजयजीना शास्त्र-संग्रहनी नं. ६११ छ ।
[६] धर्मोपदेशमालानी मुनिदेवसूरिए सं. १३२४ लगभगमां रचेली संस्कृत कथावाळी त्रीजी वृत्तिनो पण आ संपादनमां प्रसंगानुसार उपयोग करवामां आव्यो छे । ग्रं. ७२२.० सूचवेली ते पोथी, मुनिराज श्रीहंसविजयजीना उपदेशथी सं. १९६६ मां
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