Book Title: Dharmopadeshmala Vivaran
Author(s): Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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५२४
धमोपदेशमालायाम् संभूय-मुणिणा- 'अहो ! कयत्थी सणंकुमारो, जो एरिसेण इत्थीरयणेण सह जीयलोय-सुहमणुहवइ ता जइ इमस्स तवस्स फलमत्थि, ता मणुयत्तणे एरिसस्स इत्थीरयणस्स सामी उ होजा' । चित्तमुणिणा वारिज्जंतो वि कय-नियाणो गओ महासुक्के । तओ चुओ समाणो बंभस्स राइणो चुलणीए भारियाए चोद्दस-महासुमिणय-पिसुणिओ , जाओ बारसमो बंभदत्तो चकवट्टी । साहियं भरहं । समुप्पण्ण-जाईसरणेण य चित्तजाणणत्थं अवलंपि(बि)या एसा पण्हा
"दासा दासत्तणे आसी मिगा कालिंजरे नगे। हंसा मायंग-तीराए' सोवागा कासि-भूमीए ।
देवा य देवलोगम्मि आसि अम्हे महड्डिया ।" ॥ जो एयं पण्डं पूरेइ, तं राया रज-संविभागेणं पूएइ । न य कोइ पूरेइ । इओ' य चित्तदेव-जीवो उप्पण्णो पुरिमताले वणिय-सुओ' । समुप्पण्ण-जाई-सरणो अमुणियविसय-संगो वेरग्ग-मग्गावडिओ गहिय-सामण्णो पत्तो कंपिल्लं । भणिओ अरहट्टिएणं'भयवं! जइ जाणसि, ता पण्हं पूरेसु' । तेण भणियं-'पढसु' । पढिए भणियं मुणिणा
'एसा णे छट्टिया जाई अण्णमण्णेहिं जा विणा ॥' ॥ गओ आरहट्टिओ राय-समीवं । पढियं मुणि-समाइ8 । मुच्छिओ राया, समासासिओ
चंदण-रसाईहिं । केण पण्हा पूरिय त्ति सिटुं अरघट्टिएण- 'मुणिणा' । गओ राया तस्स वंदणत्थं, पणमिओ भाव-सारं । अवि य
"तं किं पि अणण्ण-समं दिखे इटुंमि होइ मण-सोक्खं ।
जं कहिऊण न तीरइ संकासं निरुवम-सुहेण ॥" ॥ सम्भाव-सारं निमंतिओ मुणी राइणा दिवाणुरूवेहिं कामेहिं । मुणिणा वि परूविओ संमत्त-मूलो मुणि-धम्मो, जलभरिय-घड व जल-बिंद न से हियय-द्विओ। तओ भोत्तण मोगे अपरिचत्त-काम-भोगो गओ अहे सत्तमीए नरय-पुढवीए । चित्तो वि संपत्तकेवल नाणो गओ नेवाणं ति । उवणओ कायबो॥
॥ भदत्त-क्खाणयं समत्तं ॥
• --[ ४७. सनिदाने तपसि त्रिपृष्ठवासुदेव-कथा]--
रायगिहे विसनंदी विसाहभूई य तस्स जुवराया।
जुवरण्णो विसभूई विसाहनंदी य इयरस्स ॥ रायगिहं नयरं विस्सनंदी राया महादेवी-गब्भुब्भवो य विसाहनंदी तणओ । विसाहभूई जुवराया, धारिणी से भारिया । तीए य पहाण-सुमिणय-पसूइओ जाओ
दारओ । कयं च से नामं विस्सभूई । वडिओ देहोवचएण, कला-कलावेण य । संपत्तो ४० जुषणं । अण्णया चूयतरु-पल्लवुवेल्ल-कणिर-कलयंठि-सह-मणहरो आणदिय-जियलोगो सुरय-सोक्खमओ विव समर-संगओ विव तरुण-मिहुणय-पहरिसमओ विव संपत्तो पसंतूसको ति । अवि य१ .ज. बी २ज. °उ । ३.क. ज. सं°।
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