Book Title: Dharmopadeshmala Vivaran
Author(s): Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 177
________________ १२२ धर्मोपदेशमालायाम् सो चूओ ?' । तेहिं भणियं - 'देव ! जाव तए गहिया मंजरी, ताव तव खंधावारेण; एवम वत्थंतरं पाविओ एसो सो चूओ' त्ति । तओ सविसायं चिंतियं रायणा - 'अबो ! करि कण्ण- चंचलाओ जीविय-जोवण-धण-सयण-रयण-पिय- पुत्त-मित्ताइयाओ विभूईओ । त किमणेण भव- निबंधणेण रजेण ?' । संबुद्धो सो वि गहिय - सामण्णो विहरिडं पयत्तो • त्ति । कमेण य पत्ता सबै वि खिइपइट्ठियं नयरं । अवि य - तओ चउदुवारे देवउले पुव्य-दुवारेण करकंडुमुणी पविट्टो, दक्खिणेण दुमुहो, अवरेण नमी, उत्तरेण नग्गई । कहं महामुणीण पराहुत्तो ठामि ? त्ति विरु (कु) वियं वाणमं" तरेण नियपडिमाए मुह- चउक्कयं । एत्थंतरंमि मसिण - कट्ठेण कन्नं कंडूइऊण मुक्कं एगपासम्मि कंडुययणं करकंडुणा । तं च दट्टण भणियं दुमुहेणं ति । देस-पुर-रज्ज-धण-सयण - कामिणी उज्झिऊण पव्वइओ । ता कीस संचयमिणं करेसि कंडूयण- तणस्स ? ॥ जाव दुम्मुहेण भणिओ करकंडू पडिसंलावं न देइ । इत्थंतरम्मि भणिओ दुम्मुहो " नमिण त्ति । अवि य - "नियरज्ज-मंतिणं उज्झिऊण रज्जं च कामिणीओ य । 20 25 30 संभरिय पुत्र जम्मा दूसह -तव-नियम - सोसिय- सरीरा । विहरता ते पत्ता चत्तारि वि धरणिट्ठिय-नयरे ॥ केणेहि तं ठविओ मुणिणो मंतित्तणे साहू ? ।।” ओ जाव दुम्मुह नमिणो पडिवयणं न देह । इमं पि अंतरेण भणिओ नमी नग्गण ति । अवि य - जाव य नमी नग्गइणो न देइ उत्तरं, एत्थंतरंमि भणिओ नग्गई करकंडुण त्ति । अवि य Jain Education International परिचत्त- सव्व-संगो मोक्ख- निमित्तं च कुणसि जइ 'जत्तं । ता कीस नं ( निं) दसि मुणी ? अणिदणिजं इमं लोए ॥ १. । तव - नियम-संयम-रए पसत्थ- सम्मत्त - गुण- जुए साहू | अहियाओ निवारेंते न दोस- वत्तव्वयमुवेइ ॥ रूसउ वा परो मा वा विसं वा परियत्तर | भासियव्वा हिया भासा सपक्ख गुण- कारिया ॥ मुह (म) हुरं परिणय-मंगुणं (लं) च गिण्हंति दिति उवएर्स । मुह - कडुयं मोक्ख फलं विरल च्चिय जीवलोगम्मि || समयम्मि सवे अवयरिया जम्मणं च संपत्ता । निक्खमणं नाणं सिव-पयं च निविय कम्मंसा || दुरिय-हरं सुपसत्थं कल्लाणं मंगलं सिवं संर्ति । पत्तेयबुद्ध-चरियं भणियं जिणसासणे एयं ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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