Book Title: Dharmopadeshmala Vivaran
Author(s): Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 178
________________ सनिदाने तपसि ब्रह्मदत्तचक्रि-कथा । सुदेव - पसाएणं मए वि पत्तेयबुद्ध-मुणि-चरियं । भणियं जहोवइटुं सिद्धते गणहराईहिं || जो निसु कत्थो इत्थी पुरिसो व मुकवावारो । सो पत्त-तिवग्ग-सुहो निवाण -सुहं पि पावेइ ॥ ॥ पत्तेयबुद्ध चरियं 'समत्तं ॥ सनिदानं तपो दीर्घसंसारफलं भवतीत्याह - दीहर- संसार - फलो सनियाण- तवो जहा य बारसमे । चकिमि तहा पढमे नवमम्मि य वासुदेवंम ॥ ३४ [ दीर्घतरसंसार - फलं सनिदानं तपो यथा च द्वादशे । चकिणि ब्रह्मदत्ते वासुदेवे त्रिपृष्टे (ष्ठे) नवमवासुदेवे कृष्णे ॥ ३४ ] [ ४६. सनिदाने तपसि ब्रह्मदत्तचक्रि- कथा ] C हत्थणापुरे नयरे सणकुमारो चक्कवट्टी । नमुई से मंती । तत्थ य विहरंता पत्ता सोयरा चित्त-संभूयाहिहाणा महातवस्सिणो । मास-पारणए पविट्ठो भिक्खट्टा संभूयमुणी । अत्थं कत्थओ मंतिण त्ति समुप्पण्णो से कोवानलो । अवि य - " तपस्विनि क्षमाशीले नातिकर्कशमाचरेत् । अतिनिर्मथनादग्निश्चन्दनादपि जायते ॥" Jain Education International १२३ अवि य - धूम-सणाहो जलणो वियंभिओ' मुणिवरस्स वयणाओ । पाउस - जलयावलीओ गयणाओ विज-पुंजो ६ ॥ मुणिय- वृत्तंतो य आगओ राया, चित्तसाहू य उवसामिओ कह कह वि । गया दोन वि उज्जाणं तत्रस्सिणो, ठिया अणसणेणं । पुणरवि आगओ तेसिं बंदण - वडियाए हत्थीरयण-सहिओ राया । वंदिया सविणयं । समासाइय-इत्थीरयण-चिहुर- फासेण चिंतियं १३. क. ज. सं० २ . उ । ३ ह. क. 'मोग । For Private & Personal Use Only 5 तत्र-य-जणिय- कोवानलस्स वियंभिओ पारावय- कवोय-रासह संकासो धूमुप्पीलो । तेण य संछाइय- नहंगणेण जलहर-संकाए पणच्चिया वण-मयूरा, उम्माहिया पहिआ, हरिसिया कासवया, विमु (म ) णीहूया रायहंसा । अणंतरं च वियंभियाओ' जलणावलीओ' । जाओ' य वित्थय पक्ख- वियाण-संछाइय- नहंगणाओ व वियरंति चक्कवाय- " पंतीओ' । किं वा संझा-रायारुणाओ पसरंति बलाहय - संतईओ ? । किं वा कुसुम-निवहसमोच्छइयाउ किंसुगासोय - वीहियाओ' ? । किं वा समुल्लसंति किंणयर ( रय) स-रंजिया वेजयंतीओ ? । किंवा फुरंति एक्कीहूयाओ' सोयामणीओ ? । किं वा सहरिस-गमणसिढिलिय- सुरवहु - केसपास - गलियाओ' पारियाय - कुसुममालाओ ? । किं वा तिहुयणभक्खणत्थमुञ्जयस्स विफुरेंति कयंतस्स रसणाउ ? त्ति । अहवा मंडेंति नहयलं ?, किं वाणुगच्छति जलहरं १, किमण्णेसंति विज्जलयाओ' १, किं वा गच्छंति रवि - मंडल ? ति । 25 10 15 店 www.jainelibrary.org

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