Book Title: Dharm Sarvasvadhikar tatha Kasturi Prakaran Author(s): Shravak Bhimsinh Manek Publisher: Shravak Bhimsinh ManekPage 37
________________ ३३ चित्तं रागादिनिः क्लिष्टं, अलीकवचनैर्मुखम् ॥ जीवघातादिनिः काय, स्तस्य गंगा पराङ्मुखी ॥ १३० ॥ अर्थ-जेनुं चित्त रागादिकोश्रीक्लीष्ट थएबुं बे, तथा जेनुं मुख जुगं वचनोथी अपवित्र थएबुं बे,तथा जेनी काया जीवहिंसा आदिकथी अशुचि थएली ने, तेनाथी गंगा उलटा मुखवाली रहे बे. ॥ १३० ॥ चित्तं शमादिन्तिः शुच, वदनं सत्यनाषणैः ॥ ब्रह्मचर्यादिनिः कायः, शुम्यो गंगाविनापि सः ॥ १३१ ॥ अर्थ-जेनुं चित्त समता अदिकथी शुद्ध थएवं बे, तथा जेनुं मुख सत्य वचनोथी शुभ थएवँ , तथा जेनुं शरीर ब्रह्मवर्यादिकथी पवित्र थएवं बे, ते माएस गंगा विना पण शुद्ध .॥ १३१ ॥ जंगमं स्थावरं चैव, विविधं तीर्थमुच्यते ॥ जंगमं झषय स्तीर्थ, स्थावरं तैनिषेवितम् ॥ १३ ॥ अर्थ-जंगम अने स्थावर एम बे प्रकार- तीर्थ कहेवाय , तेमां ऋषिो नेते, जंगम तीर्थ डे, तथा तेश्रोए सेवेवं ते स्थावर तीर्थ बे. ॥ १३ ॥ अहिंसा सत्यमस्तेय-ब्रह्मचर्यापरिग्रहाः ॥ जैदयवृत्तिरता ये च, तत्तीर्थ जंगमं स्मृतम् ॥ १३३ ॥ अर्थ-अहिंसा,सत्य,चोरी नहीं करवी ते,ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह,तथा निदा वृत्तिमां जे लोको तत्पर थएला बे एवा साधुओ जंगम तीर्थ कहेवाय . ॥ १३३ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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