Book Title: Dharm Sarvasvadhikar tatha Kasturi Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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गांभिर्य जलधेर्धनं धनपतेरैश्वर्यमेके क्षणात् । सौंदर्य स्मरतः श्रियं जलशयादायुश्च दीर्घ ध्रुवात् ॥ सौभाग्यं शुन मश्विनी सुतयुगान्वक्तिं च सत्याः सुतालावा तं विदधे विधिर्विधिमनाश्चक्रे कृपा योंsगिषु ॥ १३० ॥ अर्थ- जे माणसे प्राणी प्रते दया करेली बे, तेने विधिमा बे चित्त जेनुं एवा ब्रह्माए समुद्रमांथी गंजीरताने, कुबेरपासेश्री धनने, महादेवपासेथी ऐश्वर्यने, कामदेव पासे थी सुंदरताने, विष्णुपासे थी लक्ष्मीने, ध्रुव पासेश्री दीर्घ आयुष्यने, अश्विनी पुत्रोपाथी मनोहर सौनाग्यने, तथाव्यासपासे थी शक्तिने ले इनेबनावेलोबे नानामौक्तिकम विद्रुममणिद्युम्नाह्वयं गोमयं । दुग्धं दुग्धपयोधिहारिलहरीशुभ्रं यशः संचयम् ॥ विश्वं विश्वजनेहनीयमहसं स्वर्गापवर्गोदयं । या यत्यनिशं दयामरगवी सा रक्ष्यतामयम् ॥ १३२ ॥ अर्थ- जे दयारूपी कामधेनु, हमेशां नाना प्रकारना मोती, सुवर्ण, परवालां, मणि तथा धनरूपी गोमयने (बाण) पेबे, तथा कीर समुद्रना मनोहर मोजां सरखा श्वेत यशना समूहरूपी दूधने थापे बे, वली जे जगतमां मनोहर प्रजाववाला एवा स्वर्ग अने मोक्षना उदयरूप वत्सने ( वाबरमाने ) पे बे, एवी दयारूपी कामधेनुनुं जेम तेनो विनाश न थाय, तेवी रीते रक्षण करतुं ॥ १३२ ॥
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