Book Title: Dharm Sarvasvadhikar tatha Kasturi Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 125
________________ स्त्रीणां हार श्वातिपीनकुचयोः कांचीव कांचीपदे । गो पत्रलतेव कळालमिवालंकारकृच्चक्षुषोः ॥ रेणु मिविभूषणं चरणयोः पुण्यात्मनां जायते । ऽन्येषां वित्तमदत्तमत्र जहतां पुंसां प्रशंसापहम् ॥ १४३ ॥ अर्थ-स्त्रीश्रोना अति कठिन एवां स्तनोपर जेम हार,केम्पर जेम कंदोरो, गालपर जेम वक्षरी (पील) तथा आंखोमां जेम काजल अलंकाररूप थाय , तेम प्रशंसाने पात्र एवा नहीं दीधेला (अदत्त) परनाधननो त्याग करनारा पवित्र माणसोना चरणोनी रज (समस्त ) पृथ्वीना अलंकाररूप थाय जे. ॥१३॥ अदत्तादानमाहात्म्य- महो वाचामगोचरम् । यदर्थमाददानाना- मनर्थोऽन्येति सद्मनि ॥ १४ ॥ अर्थ-( कवि कहे बे के,) अहो!! चोरीनुं माहात्म्य वचनोने पण अगोचर ने. केमके, चोरोनुं अर्थ (धन) लेनाराओना घरमा उलटो अनर्थ आवे . ए आश्चर्य . ॥ १५४ ॥ हवे ब्रह्मप्रक्रम कहे . दो- ये जलधेस्तरन्ति सलिलं पद्न्यां ननःप्रांगणे । ये ब्राम्यन्ति च वारवापरहिताः कुर्वन्ति ये चाहवम् ॥ ये उष्टामटवीमटन्ति पटवस्ते सन्ति संख्यातिगास्ते केचिच्चलचकुषां परिचयैश्चित्तं यदीयं शुचि ॥ १४५ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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