Book Title: Dharm Sarvasvadhikar tatha Kasturi Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 136
________________ १३२ वैराग्यं सुनगं तदेव यशसां राशिः स एवोल्लसन् । स्फुर्तिः सैव शुजा च सैव च गुणश्रेणिर्मनोहारिणी ॥ ध्यानं धन्यतमं तदेव वचसामोघस्स एवानघ - स्तारास्विंडर मंदनंदनवनं यत्रौचिती चंचति ॥ १६६ ॥ अर्थ - ताराोमां जेम चंद्र, तेम अत्यंत पूजानां स्थानकरूप एवो जेमां विवेक शोजी रह्यो बे, तेज वैराग्य मनोहर जावो, तेज यशोनो समूह जलसायमान जावो, तेज कीर्ति शुन जाणवी, तेज गुणोनी पंक्ति मनोहर जाणवी, तेज ध्यानने वधारे धन्य जाणवुं, तथा तेज वचनोनो समूह पण निर्मल जाएवो ॥ १६६ ॥ शुर्यधोरणविव करित्रातेष्विवैरावणः । · कल्पदुः पृथिवीरुहेष्विव फणिश्रेणिष्विवाही श्वरः ॥ स्वः शैलो धरणीधरेष्विव हयस्तोमेष्विवोच्चैःश्रवा । जाति ख्यातिगृहं गुणेषु विलसन्नेको विवेकोदयः ॥ १६७ ॥ अर्थ- होनी श्रेणियोमां जेम सूर्य, हाथीयोना टोलांओमां जेम ऐरावण, वृक्षोमां जेम कल्पवृक्ष, सर्पोनी श्रेणिश्रोमा जेम शेषनाग, पर्वतोमां जेम मेरु, तथा घोमाधोना समूहोमां जेम उच्चैःश्रवा (ईइनो घोमो ) तेम कीर्तिना स्थानक सरखो तथा उवसायमान थतो एवो एक विवेकनोज उदय सघला गुणोमां शोने बे ॥ १६७ ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org

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