Book Title: Dharm Sarvasvadhikar tatha Kasturi Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 142
________________ १३७ माला"लोकोना कंठस्थलमारही थकी लक्ष्मीने श्रापो? सत्सूत्रमौक्तिकमहोदधितुट्यगुंफः। प्राझेंउहेमविजयेन विनिर्मितो यः॥ आदायसूक्तजलमंबुधरा श्वास्मादू । व्याख्याजुषः दितितलं सुखयंतु संतः ॥ १० ॥ अर्थ-उत्तम सूत्ररूपी मोतीयोना महासागर सरखी आरचना, विद्वानोमां चंछ सरखा श्री हेमविजयजी गणिए करेली के तेमांथी मेघोनी पेठे उत्तम माणसो "सूक्तरूपी” पाणीने लेश्ने, पृथ्वीतलपर व्याख्या करता थका सुख पामो ? ॥ १० ॥ __ एवी रीते सकल विछानोना समूहरूपी देवोमां इं सरखा पंडित श्री कमल विजयजी गणिना शिष्य पंडित श्री हेमविजय गणिजीए रचेली “कस्तूरीप्रकरण” नामनी सूक्तिमाला संपूर्ण थश्. - Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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