Book Title: Dharm Sarvasvadhikar tatha Kasturi Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 144
________________ 140 राचे रमणीरे रूप // काम विटंबण शी कहुंजी, पमीश हुँ छ ति कुपरे जीनजी // मुज० // 11 // किश्या कहु गुण माहराजी किश्या कहुं अपवाद // जेम जेम संजालं हैयेजी, तेम तेम वा वखवादरे जीनजी // मुज० // 12 // गिरुआ ते नवि लेखवेजी निगुण सेवकनी वात। निचतणे पण मंदिरेजी, चंडन टाळे ज्य तरे जीनजी॥१३॥निगुणो तोपण ताहरोजी, नाम धराव्युं दास कृपा करी संसारजो जी, पुरजो मुजमन आशरे जिनजी।मुजन // 14 // पापी जाणी मुज नणीजी, मत मूको विसार // वि हळाहळ श्रादोजी, ईश्वर न तजे तासरे जीनजी // मुज // 15 // उत्तम गुणकारी हुजी, स्वार्थ विना सुजाण // करसा सिंचे सरनरेजी, मेह न लागे दाणरे जीनजी // मुज० // 16 तुं उपगारि गुणनिलोजी, तुं शेवक प्रतिपाळ // तुं समरथ सुं पूरवाजी, कर माहारी संजाळरे जीनजी // 17 // तुंजने | कहीए घणुंजी, तुं सौ वाते जाण // मुफने श्राजो साहिबाजी, लव ताहरी आणरे जीनजी // मुज // 17 // नानिराया / चंदलोजी, मारुदेवीना नंद, कहे जीन हरख निवाजज्योर देजो परमानंदरे जीनजी॥ मुज पापीने तार // 15 // इति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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