Book Title: Dharm Sarvasvadhikar tatha Kasturi Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
________________
१३० अर्थ-(प्राणीओनु) हृदय जे स्त्रीश्रोनी क्रिमामां कुंठित थयुं , अमृत सरखां मधुर जोजनमां नाव रहित थएबुं ने, पुष्पोनी सुगंधिमां मंद थएबुं बे, उत्तम नादोवाला वाजित्रोना समूहमा उत्कंग वि. नानुं थयुं , उत्तम रूपने जोवामां मलतां दणिक सुखथी विमुख थएवं बे, महोत्सवमा वांग रहित थयुं ने, तथा धनमां पण जे श्वा रहित थयुं बे, ते लघj वैराग्यनुं लक्षण जे. ॥ १६ ॥ हेमंते हिमवातवेखितवने वस्त्रैविनायस्थितिग्रीष्मे नीमखरांशुककेशरजःपुंजेषु शय्या च यत् ॥ यर्षासु गिरेगेंहासु वसतिश्चैकाकिनां योगिनां । ताननिबंधनै रविजितं वैराग्यविस्फुर्जितम् ॥ १६३ ॥
अर्थ-हेमंत ऋतुमां ठंमा वायुथी जरेलां वनमां वस्त्रो विना जे स्थिति, ग्रीष्म ऋतुमा प्रचंड सूर्यना कीरणोथी तपेली रेतीना ढगलमा जे शयन करवू, तथा वर्षा ऋतुमा पर्वतनी गुफाश्रोमांजे रहे,ते सघर्चा एकाकी रहेता योगियोनुं मुानना निबंधनोथी नहीं जीताएबुं एवं वैराग्यनुज महात्म्य . ॥ १६३ ॥
हवे विवेक प्रक्रम कहे बे. काव्यानां करणैः कृतं सुरूचिरैर्वाचां प्रपंचैः सृतं । पूर्ण बाहुबलैरलंच तपसां पूरैः प्रसिघयंकुरैः॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144