Book Title: Dharm Sarvasvadhikar tatha Kasturi Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 123
________________ ११ तस्माद्जी स्तु हिना दिवांबुरुहिणी संजायते नश्वरा । सत्यति गीर्यदीयवदनादू गंगेव गौरीगुरोः ॥ १३५ ॥ अर्थ - हिमाचलमांथी जेम गंगा, तेम जेनां मुखमांथी सत्य वाणी निकले बे, तेनी पासेश्री, गरुमथी जेम सर्पोनी श्रेणि, तेम वैर दूर जाय बे, तथा सूर्यथी जेम अंधकार, तेम तेनाथी अकस्मात यएलो क्वेश नाशी जाय बे ने हिमथी जेम कमलिनी तेम तेनी पासेथी जय तो नष्टज थाय बे ॥ १३८ ॥ हवे दत्तप्रक्रम कहे बे. प्रेमपंकरुहिणीपति पूर्वशैलं । धर्मार्थकामकमलाकर शर्वरीशम् ॥ स्वर्गापवर्गपुर मार्ग निरोधयोधं । स्तेयं निराकुरुत कीर्तिलताकुगरम् ॥ १४० ॥ - प्रीतिरूपी सूर्यना ( उदयमाटे) पूर्वाचल समान, तथा धर्म अर्थाने कामरूपी कमलोना वनने ( नाश करवामां ) चंद्रसमान, श्रने स्वर्ग तथा मोक्षरूपी नगरीना मार्गने रोकवामां सुजट समान, तेम कीर्तिरूपी वेलमीने (कापवामां ) कुठारसमान एवी चोरीने, हे प्राणी तुं दूर कर ? ॥ १४० ॥ कीर्ति हंति खलश्च बालमिलनं माहात्म्यमंगंमहाव्याधिस्तनयः कुलं च विमलं चिंता मनश्चारुताम् ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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