Book Title: Dharm Sarvasvadhikar tatha Kasturi Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 121
________________ २१७ हवे सत्यप्रक्रम कहे . कीर्तों कल कूर्चकं हलमुखं विश्वासविश्वातले । नानानर्थकदर्थनावनघनं कौली नकेलिगृहम् ॥ प्रेमप्रौढपयोदपूरपवनं सन्मानमुस्तांकुरे । कोल कोलसदाशयोऽङ्गुतमतिर्माषां मृषां जाषते ॥ १३५ ॥ अर्थ - कीर्तिप्रते काजलना कूर्चक (पीठी) सरखा, विश्वासरूप पृथ्वीतलप्रते हलसरखा, नाना प्रकारना अनर्थोनी कदर्थनारूप वनप्रते मेघ सरखा, दुष्ट कार्योने कीमा करवाना घरसरखा, प्रेमरूपी निविम वरसादना समूहप्रते पवन सरखा, तथा सन्मानरूपी मोथना अंकुराते कोलसारखा ( सुअर सरखा ) एवा जूठा वचनने, जलसायमान श्राशयवाली थएली बे बुद्धि जेनी एवो कयो माणस बोले ? (अर्थात् न बोले ). १३५ सिंदूर : करिमूर्ध्नि मंदिरमणिर्गे च देहेऽसुमां | स्तारुष्यं चलचषि तिपतियोंनि द्विजेशो निशि ॥ प्रासादे प्रतिमालिके च तिलकं भूषा यथा जायते । कीर्तेः केलिगृहं तथा तनुमतां वक्त्रै वचः सूनृतम् १३६ अर्थ-जेम हाथीना मस्तकपर सिंदूर, घरमा दीपक, शरीरमां जीव, स्त्री मां तारुण्य, आकाशमां सूर्य, रात्री ए चंद्र, देवालयमां प्रतिमा, तथा जेम ललाटमां तिलक शोनारूप थाय बे, तेम कीर्तिने क्रीमा करवाना घर For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International

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