Book Title: Dharm Sarvasvadhikar tatha Kasturi Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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अर्थ - जे बन्ने हाथोथी समुद्रना पाणीने तरे बे, तथा जेर्ज आकाशमां पगोथी भ्रमण करे बे, तेम जे बख्तर ने बाणो विना रणसंग्राम करे बे, छाने जे चालाक थया थका जयंकर जंगलमां जटके बे, एवा तो संख्याता माणसो बे, पण जेयोनुं चित्त चलायमान चोवाली स्त्रीयोना परिचयथी पण पवित्र रहेतुं बे, एवा तो विरलाज होय बे ॥ १४५ ॥ खद्योतैरिव नानुमांश्च जपणैः कुंजीव जंनदिषः । सारंगैरिव केसरी मखनुजां नर्तेव दैत्यव्रजैः ॥ सौपर्णेय श्वोरगैश्च मरुतां स्तोमैरिवस्वर्गिरि
स्त्री निजि यदी यहृदयं शूराय तस्मै नमः ॥ १४६ ॥ अर्थ - पतंगी थी जेम सूर्य, कुतराउंथी जेम इंद्रनो हाथी, हरिणोथी जेम केसरी सिंह, दैत्योना समूहोथी जेम इंद्र, सर्पोथी जेम गरुम तथा पवनना समूहोथी जेम मेरुपर्वत, तेम जेनुं हृदय स्त्री खोथी नेदायुं नथी, तेवा शूरा पुरुषप्रते नमस्कार थाश्रो ? ॥ १४६ ॥ गुह्यं दुर्जनचेतसीव सलिलं मूर्तीव धात्रीनृतो । युद्धोर्व्यामिव कातरः कलिमलः स्वांते सुसाधोरिव ॥ दौर्गत्यं धरणीरुही मरुतां भेजे न चेतोंबुजे । स्थैर्य यस्य मृगीदृशां विलसितं धन्याय तस्मै नमः ॥ १४७ ॥ अर्थ- दुर्जनना चित्तमां जेम गुह्य वात, पर्वतना शिखरपर जेम पाणी, समरांगणमां जेम कायर, उत्तम मु
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