Book Title: Dharm Sarvasvadhikar tatha Kasturi Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

Previous | Next

Page 127
________________ १२३ नीना मनमा जेम क्लेशनो मेल, तथा वृदोमां जेम पवनोनु उहतपणुं स्थिर रहेढुं नथी, तेम जेनां चितरूपी कमलमां स्त्रीश्रोनो विलास स्थिर रहेलो नथी, एवा धन्य पुरुषप्रते नमस्कार थायो ? ॥१४॥ नंगनोगैर्लसदंतरालैनेणीदृशां देहसदर्पसपैः॥ सध्यानदीपः समियाय शांतिं । तस्मै नमः संयमिकुंजराय ॥ १४ ॥ अर्थ-अंदर उलसायमान थता चुकुटीना नंगरुपी फणावाला, एवा स्त्रीयोना शरीररुपी उन्नत सोए करीने, जेनो उत्तम ध्यानरुपी दीपक ठरी गएलो नथी, एवा संयमीश्रोमां अग्रेसर सरखा पुरुष प्रते नमस्कार थाओ? ॥ १४ ॥ हवे परिग्रहप्रक्रम कहे . नूयोनारजराजिततरणी वा विवोनीषणे । संसारे सपरिग्रहा तनुजुषां राजिर्निमजात्यधः॥ तत्कांदन्ति परिग्रहं जपतपश्चारित्रपावित्र्यधीः । शुमध्यानविधौ विधुतुदममुं मोक्तुं विमुक्तौ रताः॥१४॥ अर्थ-नयंकर समुडमा घणा नारना समुहथी सुबुंमुबु थएला वाहणनी पेठे, या संसारमा परिग्रहयुक्त, एवी माणसोनी श्रेणि नीचे नीचे (नरकादिक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144