Book Title: Dharm Sarvasvadhikar tatha Kasturi Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 128
________________ १२४ गतिमां) मुबे जे; तेथी मुक्तिरुपी स्त्रीमा श्रासक्त थएला प्राणीयो जप, तप, चारित्र, पवित्रता, बुद्धि, अने शुक्र ध्यानरुपी चंडने (प्रसवामां) राहु सरखा ते परिग्रहने डोमवाने श्छे बे. ॥ १४ए ॥ प्रषबंधुः कलहैकसिंधुः। प्रमादपीनः कुमताध्वनीनः ॥ औचत्यहेतु कृतिधूमकेतुः। परिग्रहोऽयं उरितद्रुतोऽयम् ॥ १५ ॥ अर्थ-वेषना बंधुसरखो, क्लेशना समुनसरखो. प्रमादथी पुष्ट थएलो, कुमतमा दोरी जनारो, उछतपणाना हेतुरुप, तथा धीरजप्रते धूमकेतु सरखो आ परिग्रह पापोथी उपजवयुक्त थएलो वे.॥१५॥ पित्रोरूपास्तिं सुकृतानुशास्ति । प्राज्ञैः प्रसंगं गुणवत्सु रंगम् ॥ परिग्रहप्रेरितचितवृत्ति जहाति चैतन्यमिव प्रमीतः ॥ १५१ ॥ अर्थ-मृत्यु पामेलो प्राणी जेम चैतन्यने, तेम परिग्रथी प्रेराएली ने चित्तनी वृत्ति जेनी, एवो माणस माबापनी सेवाने, पुण्योनी शिखामणने, विद्वानो साथेना संगने, अने गुणवानो प्रतेना चित्तानिलाषने पण तजे . ॥ १५१ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144