Book Title: Dharm Sarvasvadhikar tatha Kasturi Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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११४ दातारोऽपि पदे पदे घनधनैः कट्पद्रुकल्पाः कलौ । ते केऽपींघियतस्करैरपहृतं येषां न पुण्यं धनम् ॥ २२ ॥ अर्थ-(आ जगतमां) विचारपूर्वक वचनोए करीने चित्तमां आश्चर्य उपजावनारा घणा विद्वानो , तेम रणसंग्रामरूपी व्यापारमा आदरवाला थएला एवा शूराउ पण हजारो गमे ,तेम घणां धनथीथा कलिकालमां कल्पवृक्ष सरखा पगले पगले दान देनाराओ पण घणा बे, पण जेोनुं पुण्यरूपी धन इंजिशोरूपी चोरोए चोरेलु नथी, एवा तो विरलाज होय ॥१॥
हवे दयाप्रक्रम कहे . शक्रस्यैव सुरक्षिषो मधुरिपोरेवांमजानां पतिः । श्रीदस्यैव च पुष्पकं पशुपतेरेवोदचूमामणिः ॥ स्कंदस्यैव नुजंगनुग्गणपतेरेवोंपुरो वाहनं । धन्यस्यैव शिवाध्वनि प्रविदिता यानं कृपा कोविदैः ॥१३॥
अर्थ-इंअनुज जेम ऐरावण हाथी, विष्णुमुंज जेम गरुम, धनदनुज जेम पुष्पकविमान, महादेव-जजेम बलद, कार्तिकेयनुज जेम मयूर, तथा गणपतिनुंज जेम उंदर वाहन , तेम मोदमार्गप्रते (जवामां) को धन्य माणसनुंज दयारूपी वाहन होय ,एम पंमितोए कहेj . ॥ १३० ॥
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