Book Title: Dharm Sarvasvadhikar tatha Kasturi Prakaran Author(s): Shravak Bhimsinh Manek Publisher: Shravak Bhimsinh ManekPage 89
________________ अन्यैर्गुणैरलमलंकरण नराणां । यद्यस्ति चेधिनयममनमेकमंगे। आयांति नायकमिव ध्वजिनीजना यत् । सर्वे गुणाः स्वयमिदं हृदये वहन्तम् ॥ ६ए॥ अर्थ-फक्त एक विनयरूपाजूषणज जो अंगपर धारण कयुं होय, तो पली बीजा गुणोरुपी थानूषणोनी मनुष्योने कंश जरुर नथी. केमके हृदयमा ते विनयने धारण करनार माणसनी पासे, सेनापति प्रते जेम सेनाना माणसो तेम सर्वे गुणो पोतानी मेलेज आवी पहोंचे बे. ॥ ६॥ प्रेमपात्रं प्रजायंते, विनीताः पशवोऽपि हि ॥ तस्माधिनय एवायं, स्वीकार्यः कार्यकोविदैः ७० ॥ अर्थ-विनयवाला पशुश्रो पण प्रेमना पात्ररूप थाय डे, (अर्थात् बहुज वहालां लागे , ) माटे (पोताना) कार्यमां चतुर एवा माणसोए ते विनयनोज स्वीकार करवो. ॥ ७० ॥ हवे न्याय प्रक्रम कहे . प्राणा यांतु सुरेंजचापरुचयः संपत्तयश्चाचिरा। संचाराः पितृपुत्रमित्ररमणी मुख्या:समा बुदबुदैः॥ तारुण्यादिवपुर्गुणा गिरिनदी वेगैकपारिप्लवाः। कीर्तेः केलिगृहं तु नीतिवनितासंगश्चिरं तिष्ठतु ॥ १॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org www.jarPage Navigation
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