Book Title: Dharm Sarvasvadhikar tatha Kasturi Prakaran Author(s): Shravak Bhimsinh Manek Publisher: Shravak Bhimsinh ManekPage 99
________________ एय लोजातां एवा (तारा)हृदय तारे रक्षण करवू जोइए; केमके, लोजना समूहथी पराजव पामेलां हृदयमां, शिलामा जेम कमलोनं उगवं तेम, आत्मार्थना समूहना विस्तारनी उत्पत्ति थती नथी. हवे द्यूतप्रक्रम (जुगार- प्रक्रम ) कहे बे. जक्तिं ननक्ति विनयं विनिहंति तृष्णां । पुष्णाति तर्जयति वर्यमजर्यवीर्यम् ॥ पूजां परालवति नीतिमपाकरोति । द्यूतं विदूरयत तव्यसनाध्वसूतम् ॥ १ ॥ अर्थ-हे प्राणी ! जे जुगार नक्तिने तोमीपाडे , विनयने नाश करे , तृष्णाने पुष्ट करे डे, मनोहर तथा निबिम एवा वीर्यनी तर्जना करे बे, पूजानो (कीर्तिनो)परानव करे ,तथा नीतिने दूर करे डे,एवा मुखना मार्गने उत्पन्न करनारा जुगारने तमो दूर करो वध्यां धाम्नि वधू विधाय स कुधीधुर्यः सुतानीहते । ऊंपापातमुपेत्य पर्वतपतेः प्राणान् स च प्रेप्स्यति ॥ सनिजामधिरुह्य नावमुदधेः कूलं च कांदत्यसौ। कृत्वा कैतवकौतुकं प्रकुरुते वित्तस्पृहां यो जमः ॥ ए॥ अर्थ-जे मूर्ख माणस जुगारनुं कौतुक करीने धननी श्वा करे , ते कुबुझिनो सरदार माणस घरमां वंध्या स्त्री राखीने पुत्रोने श्वे , मेरुपर्वतपरथी ऊंपापात Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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