Book Title: Dharm Sarvasvadhikar tatha Kasturi Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 115
________________ १११ थायबे, तथा उत्पन्न थएला कलंकरूपी पंकथी बवाएलो यो बे, माटे नीचना आचारनी विधिमा जेम सन, तेम एवी दुःखदायक तथा स्वेच्छाचारी परस्त्री मां कयो उत्तम बुद्धिवान माणस प्रीतिवालो थाय ? ॥१२२॥ घो स्थितिमी स विमतिर्मुक्त्वामराणां पुरीं । त्यक्त्वा मंदर मेदिनी मवकरानुत्खातुमुत्कश्च सः ॥ पातुं वांति मुक्तनिर्मलजलः स ग्राममार्गोदकम् । त्यक्त्वात्मप्रमदाः पर प्रियतमा यः सेवितुं कांति ॥ १२३ ॥ अर्थ- जे माणस पोतानी स्त्रीने तजीने परस्त्रीने सेववाने इछे छे, ते बुद्धि विनानो माणस देवतानी नगरीने बोडीने गोकुलमां (गायोना टोलामां) र हेवानुं इवे बे, तथा (सुवर्णमाटे) मंदराचलनी जूमिने तजीने करमा खोदवाने वे बे, तेम निर्मल जल तजीने गामकानी गटरनुं पाणी पीवाने ते इछे बे ॥ १२३ ॥ निजांगना संगमनंगरंगा दन्येषु वत्सु यथात्मकोपः ॥ तथा परेषामिति मन्यमानास्त्यजन्ति संतः परकीयपत्नीः ॥ १२४ ॥ अर्थ-जेम अन्य माणसो, कामदेवना रंगथी पोतानी स्त्रीना संगमने वेबते, पोताने जेम क्रोध चडे बे, तेम परने पण चडे, एवं विचारता थका सन पुरुषो परस्त्रीनो त्याग करे छे. ॥ १२४ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only ' www.jainelibrary.org

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