Book Title: Dharm Sarvasvadhikar tatha Kasturi Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

Previous | Next

Page 113
________________ १०ए तेरूपी पाणीनी परब सरखी , तेम तेश्रोनी मूर्ति, कामदेवरूपी राजाना (रूपना) गर्वरूपी चंजने (ग्रस्त करवामां ) राहुसरखी शोने . ॥ ११ ॥ श्रीकीर्तिविस्फुर्तिलताम्बुवाहं । दौलाग्यदैन्याम्बुजसप्तवाहम् ॥ विधनधाराधरगन्धवाहं । विमुंच चौर्य उरितप्रवाहम् ॥ ११ए॥ अर्थ-अपकीर्तिना फेलावारूपी वेलमीने (वृद्धि करवामां) वरसाद सरखी, पुर्नाग्यपणुं तथा द रिजतारूपी कमलने (विकस्वर करवामां) सूर्य सरखी, अने विश्वासरूपी मेघने (नाश करवामां) पवन सरखी, तथा पापोना प्रवाह सरखी, एवी चोरीने, हे प्राणी! तुं तजी दे ? ॥ ११ ॥ हवे परस्त्रीप्रक्रम कहे . नो हास्यं सुरतप्रपंचचतुरं नालिंगनं निर्लरं । नैवोरोजसरोजयुग्मललुत् पाणिं प्रमीलामलम् ॥ नो बिंबाधरचुंबनं स्थिरतया कुर्यात् पुमान् प्रेयसीमन्येषां रमयन्निकामचकितः कामीति काम्या न ताः॥१०॥ अर्थ-कामी माणस परस्त्रीनी साथे विलास करतो थको ते समये अत्यंत बीकनोमार्यो, तेणीनीसाथे संजोगना प्रपंचमां योग्य एवं हास्य करी शकतो नथी, तेणीने अत्यंत आलिंगन करी शकतो नथी, तेणीना Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144