Book Title: Dharm Sarvasvadhikar tatha Kasturi Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 106
________________ १०२ मतिकमलिनीनागं गगं पुरूहहविर्नुजः । प्रकटितदयादैन्यं सैन्यं प्रमादमहीपतेः॥ व्यसनपयसां सिंधुं बंधुं कषायधरास्पृशां । परिहर सुरापानं यानं विपत्पुरवमनि ॥ १०४॥ अर्थ-बुद्धिरूपी कमलिनीनो ( नाश करवामां) हाथी समान, कुतर्करूपी अग्निप्रते बोकमासमान, प्रगट करेल ने दयाप्रते दैन्यजाव जेणे एवा, प्रमादरूपी राजाना सैन्य सरखा, आपदारूपी पाणीना समुज सरखा, कषायरूपी प्राणीऊना बंधुसरखा, तथा कुःखरूपी नगरना मार्गमां वाहन सरखा एवा सुरापानने, हे प्राणी ! तुं तजी दे ? ॥ १०४ ॥ हवे वेश्याप्रक्रम कहे . यक्त्रं विटकोटिवक्त्रनिपतन्निष्टीवनानां घटी। यदाश्च जनंगमादिजनतापाणिप्रहारास्पदम् ॥ यजात्रं बहुबाहुदंमनिबिमकोमीकृतिनशितं । प्रेमैतासु दधाति धावकशिलातुट्यासु वेश्यासु कः ॥ १०५॥ अर्थ-जे वेश्यायोगें, मुख, क्रोमो गमे लफंगाउना मुखमांथी पडता थुकनी कुंमी सरखं बे, तथा जेनी बाती चांमाल आदिकना हाथोथी हणाएली बे, तथा जेश्रोन अंग घणा माणसोना बाहुदंमना आलिंगनथी शिथिल थरंगयुंडे,एवी धोबीनी शीला Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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