Book Title: Dharm Sarvasvadhikar tatha Kasturi Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 110
________________ १०६ अर्थ-जे शिकाररूपी (विवाहना ) महोत्सवमा वनवासी प्राणीउना आक्रंदरूपी गीतो बे, तेश्रोना रुधीरथी नराएलां खाबोचीरूपी कुंकुमना हाथाउ (गपां) डे, ज्यां क्रूर कुतराउंना समूहो सोबती (जानैया) , वली अहो! ज्यां प्राणीउँना समूहना मांसनी रसोइ बे, तथा ज्यां नरकरूपी स्त्री आवीने शिकारीने आलिंगन करे , एवा ते महोत्सवमा कयो उत्तम बुद्धिवान माणस जाय?(अर्थात् न जाय.) ये नीरं विपिबन्ति निरनवं कुंजे च ये शेरते । ये चाश्नन्ति तृणानि कानननुवि ब्राम्यन्ति येऽहर्निशम् ।। ये च स्वरविहारसारसुखिता निर्मन्तवो जन्तवो। हत्वा तान् मृगयासु कः समनबवनेषु नान्यागतः ॥११३॥ . अर्थ-जे बिचारा निरपराधी (वनवासी) पशु करणाउनुं पाणी पीए के, कामीमां सुश रहे , घासो खाय , वननी नूमिमां हमेशां ब्रमण करे , एवी रीते जे स्वेछाचारी मनोहर विहारथी सुखी थएला डे, तेयोने शिकारमा हणीने, कयो माणस नरकनो परोणो थयो नथी? ॥ ११३ ॥ जावान् नतां यत्र नलोंऽबुनूगान् । जवत्रयार्थः समुपैति हानिम् ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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