Book Title: Dharm Sarvasvadhikar tatha Kasturi Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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१०५ जे मूढ माणसो (शिकारमाटे) जयंकर जंगलमा जटक्या करे बे, तेश्रोथी वनवासी प्राणीयो सहित सघलां सुखो पण त्रास पामे डे, वली तेश्रोनी साथेज वेगवाला कुतरा सहित कुःखना समूहो पण जम्या करे , वली विविध प्रकारना आयुधवाला एवा तेश्रो पशुधोनी साथे (पोतानां) पुण्योने पण वींधी नाखे बे. ॥ ११० ॥ संपर्क नरकैः कलिं च कुशलैर्वैरं सतां संगमैः । प्रीति नीतिनरै रघैः परिचयं प्रेमापदां प्रापणैः॥ उधेगं विनयैर्नयैरमिलनं चेदीहसे हे सखे । सत्ववातनयंकरं कुरु तदा साटोपमाडोटनम् ॥ १११ ॥
अर्थ-हे मीत्र! जो तुं नरकसाथे संगम करवाने, पुण्यसाथे क्लेश करवाने, सजनोनी सोबतसाथे वैर करवाने, नयना समूहसाथे प्रीति करवाने, पापोनी साथे परिचय करवाने, फुःखदायक वस्तुउँसाथे प्रेम करवाने, विनयसाथे जोग करवाने, तथा न्यायसाथे नहीं मलवाने श्छतो होय, तोज प्राणीना समूहने जय करनारा एवा शिकारने आटोपसहित कर ? १११
आक्रंदा वनवासिनामसुमतां गीतानि तेषामसृकू । कुड्याः कुंकुमहस्तका अनुचराः कुराः शुनां राशयः ॥ जंतुव्रातपलान्यहो रसवती यस्मिन् मृगव्यामहे । श्वत्रस्त्री परिरभ्यते मृगयुनिःकस्तत्र गत् सुधीः॥ ११॥
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