Book Title: Dharm Sarvasvadhikar tatha Kasturi Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 100
________________ करीने ते प्राणोनी श्छा राखे ,तथा बीउवाला वाहाएमां बेसीने ते किनारे पहोंचवानी श्छा करे .ए॥ जातन् नूतलराजिनूत इव यलुब्धो दृशा नेदते । नक्तोक्ति शृणुते न च ज्वरितवद्यद्दत्तचित्तः पुमान् ॥ लजामुन्फति मद्यमूचित श्वासक्तश्च यत्र द्रुतं । द्युतं वित्तविनाशनं त्यज सखे तन्मूर्खमैत्रीमिव ॥ ए३ ॥ अर्थ-जे जुगारमा आसक्त थएलो माणस,जाणे नूतोनासमूहथी परानव पामेलो होय नहीं जेम, तेम जाने तो आंखेथी जोतो पण नथी; तेम ते जुगारमां रहेलां चित्तवालो माणस ताप चडेलानी पेठे सेवकना वचनने पण सांजलतो नथी; वली तेमां लीन थएलो माणस मदिराथी मूर्छित थएलानी पेठे तुरत लजानो पण त्याग करे ;माटे हे मित्र! मूर्खनी मित्राइनीपेठे धननो नाश करनारा,एवा जुगारते तुं बोमीदे यत्रापदां वृंदमुपैति वृधि । कंदस्तरूणामिव वारिलूमौ॥ त्यति तत्किं न मनीषिमुख्या । द्यूतं दुराकूतमनूतमार्यैः ॥ एव ॥ अर्थ-जे जुगारमां,जलवाली जमीनमा जेम वृदोनुं मूल, तेम फुःखोनो समूह वृद्धि पामे डे; एवा पुष्ट आशयवाला,तथा उत्तमजनोथी नहीं स्तुति कराएला जुगारने, हे पंमितमुख्यो ! तमो केम तजता नथी ? Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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