Book Title: Dharm Sarvasvadhikar tatha Kasturi Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 75
________________ अर्थ-जे उर्बुद्धिो कपट करीने बगलांश्रो जेम मत्स्योने तेम सर्व जनोने उगे , ते मूर्योए निर्मल कीर्तिरूपी लताप्रते वरसाद सरखी मित्राश्थी प्रपंचमां चतुर एवा पोताना आत्माने उग्यो बे. ॥४१॥ मायामिमां कुटिलशीलविहारविज्ञां । मान्यमहे हृदि नुजंगवधूं नवीनाम् ॥ दष्टोऽनया स्मितसरोजसहोदरास्यो । मोहं नयेद्यदितरान्मधुरं ब्रुवाणः ॥४॥ अर्थ-कुटिल शीलना (पुराचारना) विहारमा चतुर एवी मायारूपी सर्पणीने श्रमो हृदयमां विचित्र प्रकारनी (आश्चर्यकारक)मानीए बीए; केमके जेनाथी मंखाएलो माणस विकखर थएला कमल सरखा मुखवालो थयो थको,तथा मीठां मीठां वचनो बोलतोथको (उलटो) बीजाने मोहमा नांखे बे. ॥ ४२ ॥ विधेनं नुजगीव जीविततनुं व्याहंति या देहिनां । या सौहार्दमपाकरोति शुचितां स्पर्शोऽशुचीनामिव ॥ या कौटिल्यकलां कलामिव विधोः पुष्णाति पक्षः सितस्तां निर्मोकमिवोरगः दतगतिं मायां न को मुंचति ॥४३॥ अर्थ-जे माया (कपट) सर्पणी जेम जीवितने, तेम माणसोना विश्वासने हणे ,तथा अशुचि पदाअॅनो स्पर्श जेम पवित्रताने, तेम जे मित्राश्ने पूर करे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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