Book Title: Dhanyakumar Charitra Author(s): Bhattarak Sakalkirti, Udaylal Kasliwal Publisher: Digambar Jain Pustakalay View full book textPage 9
________________ - श्री धन्यकुमार चरित्र ग्यारह अंग चतुर्दश पूर्व तथा प्रकीर्ण रुप शरीरके धारण करनेवालो, सम्यग्दर्शनादि रत्नालंकारसे विराजित, सप्ततत्व नव पदार्थके वर्णनसे युक्त, अनन्त सुखको देनेवाली गुणोंसे विभूषित, जिनभगवानके मुख कमलसे उत्पन्न तथा गणधर भगवान के द्वारा वृद्धिको प्राप्त भारती (सरस्वती) मेरे द्वारा स्तवन की हुई तथा नमस्कार की हुई सर्वार्थ सिद्धिकी प्राप्तिके कारण अथवा सम्पूर्ण अर्थको सिद्धि के लिये हो ॥१६-१७॥ ___बाह्य अन्तरङ्ग परिग्रहसे विनिर्मुक्त, योग्य उत्तम २ गुणोंसे विभूषित, संपूर्ण भव्य पुरुषों के हित करने में तत्पर, संसार रुप समुद्रके पारको प्राप्त हुये तथा संपूर्ण अर्थकी सिद्धि के साधन करने वाले धन्यकुमार प्रमुख बाकीके सब योगीराजोंको उनके गुणोंकी समुपलब्धिके लिये स्तवन करता हूँ ॥१८-१९।। इस उत्तम २ मङ्गल करनेवाले उत्कृष्ट तीर्थंकर भगवान, जिनवाणी तथा आचार्यादि साधुओंका स्तवन तथा अभिवन्दन करके मङ्गलसिद्धि, अपने आरंभ किये हुयेकी सिद्धि, विघ्ननाश, मोक्षसम्प्राप्ति तथा कर्म नाश प्रभृति कार्योकी सिद्धिके लिए अपने और दुसरोंके हितकी इच्छासे उत्तम वैश्य कुलदीपक तथा सर्वार्थसिद्धि में जानेवाले धन्यकुमार का शभ और पवित्र चरित्र निर्माण करुंगा ॥२०-२२।। जिस चरित्रके सुननेसे भव्य पुरुषोंके रागरुप शत्रु तो नाश होंगे और संवेग तथा समाधित आदि गुणसमूह समुद्भ त होंगे ॥२३॥ ग्रन्थकार कहते हैं कि मैं इस धन्यकुमारके चरित्रके द्वारा स्वर्गकी सम्पदाके सुखका कारण, बडे २ उत्तम पात्रोंके दानका शुभ फल कीर्तन करुंगा ॥२४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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