Book Title: Dhanyakumar Charitra
Author(s): Bhattarak Sakalkirti, Udaylal Kasliwal
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 10
________________ पहिला अधिकार [ ५ यही कारण है कि धन्यकुमार केवल पात्रदान के फलसे राज्य सम्पदा से विराजित तथा स्वर्गकी लक्ष्मीका उपभोग करनेवाला हुआ ।।२५।। , इस विशाल वसुन्धरा मण्डल पर जम्बू वृक्षसे उपलक्षित लाख योजन विस्तारवाला, तथा समुद्र से वेष्टित गोलाकार जम्बूद्वीप है । उसके मध्य में अत्यन्त मनोहर लाख योजन ऊंचा और जिनमंदिर देव तथा देवाङ्गनाओंसे शोभायमान सुवर्णमय सुमेरु शैल है ।। २६-२७।। उसके दक्षिण भाग में अतिशय सुन्दर तथा विद्याधर मनुष्य और देवताओंसे शोभायमान धनुषाकार उत्तम भरतक्षेत्र है ||२८|| उसके ठीक बीचमें अत्यन्त हृदयहारी, धर्मके सम्पादनका कारण, विद्वान तथा उत्तम २ कुलमें समुत्पन्न धर्मात्मा पुरुष तथा जिन भगवान आदिसे विभूषित आर्यखण्ड है || २९ ॥ उसमें उत्तम २ मनुष्यों से पूर्ण, ग्राम, खेट तथा पुर आदिसे सुन्दर, स्वर्ग और मोक्षकी समुपलब्धिका हेतुभूत अवन्ती नाम देश है ||३०|| जिसमें जगतके उपकार करनेवाले आचार्य, उपाध्याय, साधु, गणधर तथा केवलज्ञानी ये सब अपनी२ विभूति के साथ विहार करते हैं ||३१|| जहां योगीन्द्र (साधु), जिनालय तथा धर्मात्माओंसे पुर, पतन, खेट, ग्राम, गिरि तथा भुवनादि शोभायमान हैं ||३२|| जिस देश में उत्पन्न हुये कितने बुद्धिमान पुरुष तो तपश्चरण द्वारा मोक्षका साधन करते हैं, कितने सर्वार्थ सिद्धिका तथा कितने प्रवेयकादिका साधन करते हैं ॥ ३३॥ कितने विचक्षण पुरुष सर्वज्ञ भगवानकी परिचर्याके द्वारा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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