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श्रो धन्यकुमार चरित्र थी। उन्हें मन्त्री आदि लोगोंने बहुत कुछ समझाया तब भी प्रेमके आंसुका वेग उनसे रुक न सका । बाद उनको किसी तरह राजमहलमें ले गये ।
धन्यकुमारने पिताकी वस्त्राभरण और भोजनादिसे सेवा कर भाईयोंका चरित्र, अपने आनेका हाल और राज्यके मिलने आदिकी सब कुछ कथा कह सुनायी। बाद-माता और भाई बन्धुओंकी कुशल पूछी ।
उत्तरमें धनपाल बोला-वे सब बड़े ही मन्दभागी हैं, इस समय उनका जीवन बुरी दशामें है, पीछे पुराने ही घरमें रहने लगे हैं और पास कुछ भो पैसा नहीं है जो उनके द्वारा निर्वाह कर सके । जब तुम वहांसे चले आये उसी दिन रातके वक्त घरके रक्षक देवता लोगोंने हम लोगोंको निकाल दिये थे इसीसे फिर पुराने घरका आश्रय लेना पड़ा। ___ हम लोगोंमें एक तुम ही पुण्यवान थे सो तुम्हारे निकलते ही सब धन भी तुम्हारे साथ२ बिदा हो गया। आज मैं अपनेको बडा ही भाग्यशाली समझता हूं जो बहुत दिनके बाद फिर तुम्हें देख पाया ।
पिताके वचन सुनते ही धन्यकुमारने अपने नौकरोंको खूब वस्त्र वगैरह देकर माता भाई आदिको लिवा लाने लिये भेजे ।
जब प्रभावती आदिको धन्यकुमारके समाचार मिले तो उन्हें बड़ी खुशी हुई, वे सब उसी समय वाहनों पर सवार होकर राजगृह आये। उनके आनेका हाल सुनकर कुमार अपने साथ और भी कितनेक राजाओंको लेकर भक्तिपूर्वक उनके लिवा लानेके लिये आधी दूर तक सामने आया।
रास्तेमें अपनी माताको आती हुई देखकर बहुत विनयके
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