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श्री धन्य कुमार चरित्र अनुप्रेक्षाओंका धर्मवृद्धिके लियेदशलक्षण धर्मका सम्यग्दर्शन निर्मलताके लिये तत्वोंका, और मन तथा पांचों इन्द्रियोंके रोकने के लिये जैन शास्त्रोंका निर्विकल्प चित्तसे मनन करते थे। इत्यादि कठिन२ योग और तप इन साधुओंने जीवनभर पालन किया । ___अन्तमें धन्यकुमार महामुनिने चार प्रकार आहार तथा शरीरादिमें मोह छोड़कर अकेले ही निर्जन वनमें पर्वतकी तरह निश्चल खड़े होकर विधिपूर्वक सल्लेखना स्वीकार की।
पहले ही क्षमादि अच्छे२ गुणोंके द्वारा कषायोंको घटाकर शरीर सल्लेखना करने लगे सो थोड़े दिनों में उपवासादिके द्धारा सारा शरीर सुखाकर सुधादि परीषह जीती ।
धन्यकुमार मुनिके मुख और होट आदि सभी सूख गये थे तो भी उनमें धैर्य और मनस्विता थी। शरीर में केवल चमडा और हड्डियां मात्र रह गई थीं तब भी उनका महाबल और क्षमा-शीलपना बड़ा ही आश्चर्य उत्पन्नकरता था।
कभी बहुत सावधानीसे चार आराधनाओंका आराधन करते, कभी पंचपरमेष्ठी पदका और कभी परमात्मा का ध्यान करते। अन्तमें सब सालम्ब ध्यान छोड़कर निरालम्ब ध्यान, करना आरम्भ किया ।
इसी तरह शुभ ध्यान, शुभ योग और शुभ लेश्याओंके द्वारा नव महीने तक सल्लेखनाका पालन किया और अन्त में
प्रायोपगमन मरणके द्वारा ध्यान और समाधिपूर्वक प्राण छोडकर तप तथा धर्म के प्रभावसे सर्वार्थसिद्धि में उपपाद शय्यामें जन्म लेकर अन्तमूहुर्त मात्रमें अतिशय सुन्दर शरीरके धारक अहमिन्द्र हो गये।
वह अहमिन्द्रदेव और जो अहमिन्द्रदेव थे उनके साथ भी अनेक तरहकी धार्मिक कथा करता और कभी स्फटिकमणिके बने हये स्वभाव सुन्दर अपने महलोंमें अथवा नन्दन वनमें
प्रायोपगमन मरणके वक्त किसीसे अपना वैयावृत्य नहीं कराया जाता है।
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