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सातवां अधिकार
[ ७९ खेला करता । तेतीस हजार वर्ष बाद कण्ठमें झरता हुआ अमत उसका आहार है। और साढे सोलह वर्ष बाद उसे 'श्वासोच्छवास लेना पड़ता है । __इसी तरह उत्तम२ सुखका उपभोग करता हुआ वह अहमिन्द्र सदा सुख-समुद्र में डुबा रहता है । आयुकी मर्यादा पूरी होनेपर यही राज्यकुल में जन्म लेकर मोक्ष जायगा ।।
धन्यकुमार मुनिके अलावा शालीभद्रादि जितने ही मुनि थे वे भी जीवनभर तपश्चरण कर और अन्तमें समाधि पूर्वक प्राणौका परित्याग कर अपने२ तपश्चरण के अनुसार सौ धर्म स्वर्गसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तक गये । उपसंहार
देखो ! दुःखी, दरिद्री अकृत पुण्य केवल दान की भावना तथा थोड़ेसे दानके फलसे धन्यकुमार हुआ और फिर तपश्चरणके द्वारा सर्वार्थसिद्धि में गया इसलिये गृहस्थो ! इस उदाहरणसे तुम्हें भी दान देनेकी शिक्षा लेनी चाहिये। ____ गुणके खजाने धन्यकुमार मुनिराज धन्य हैं उनके गुणोंकी मैं स्तुति करता हूं, और उन्हींके बताये अनुसार मोक्षमार्गका सेवन करना चाहता हूं, उनके लिये मस्तक नवाकर नमस्कार करता हूं, उन्हीं के द्वारा स्तुति होने की आशा है इसीलिये उनके गुणोंका ध्यानकर अपने मनको लगाता हूँ । हे धन्य ! क्या मुझे भी अपनी तरह धन्य न करोगे ?
धन्यकुमार मुनिका यह निर्मल चरित्र है इसे जो लोग 'भक्तिसे पढेंगे, धर्मसभाओंमें वांचेंगे अथवा सुनेंगे वे लोग उत्तम परिणामोंके द्वारा उत्पन्न होनेवाले धर्मके फलसे स्वर्गसुख 'भोगकर बादमें तपश्चरण के द्वारा रत्नत्रय युक्त हो नियमसे मोक्ष-सुखके भोगनेवाले होंगे। - अन्तमें मेरी निर्दोष और गुणज्ञ विद्वानोंसे प्रार्थना है कि वे लोग थोड़े पढ़े हुये मुझ सकलकीतिके द्वारा केवल भक्तिसे बनाये हुए इस चरित्रका संशोधन करें ।
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