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श्री धन्यकुमार चरित्र गान कर सार्थक हुई और गुणोंका ध्यान, चिन्तवन करनेसे मन पवित्र हुआ।
अनाथबन्धो ! आज यह शरीर भी सफल है जो आपके चरणोंकी इसने सेवा की और हम भी धन्य हैं जो आपको भक्तिसे सुगन्धित हुये ।
भगवन् ! यद्यपि यह संसार अपार है परन्तु आपके आश्रय करनेवालोंको तो चुल्लु भर मालुम देता है, क्योंकि आप इसके जहाज हैं न ?
नाथ ! आप अनन्त गुणके स्थान हैं, आपको स्तुति गणधर सरीखे बड़े२ महामुनि भो नहीं कर सकते तो उनके सामने हम लोग किस गिनती में हैं जो थोड़ेसे अक्षरोंका ज्ञान रखते हैं । इसलिये हे देव ! आपको नमस्कार है, आपके अनन्त गुणोंको नमस्कार है और सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान तथा सम्यक्चारित्र रूप रत्नत्रयके देनेवाले को नमस्कार है।
विभो ! आपको स्तुति और नमस्कारका प्रतिफल तपचरणके साथ २ रत्नत्रय चाहते हैं क्या आप दया करेंगे ? अथवा हमें आप अपने ही समान बना लीजिये फिर सभ्यक्वादि तो सहज हो हो जावेंगे। बस यहो हमारा इच्छित है और इसीके लिये आपके सामने हाथ जोड़े हुये खड़े है। ___ बाद भगवानके कहे अनुसार धन्यकुमार और शालीभद्र आदि सब महापुरुषोंने शाश्वत् मोक्षसुखके लिये बाह्य और अन्तरङ्ग परिग्रहका तथा मोहका मन वचन कायकी शुद्धिसे परित्याग किया और मोक्षकी माता जिन-दीक्षा स्वीकार कर अठ्ठाईस मूलगुण धारण किये ।
तदनन्तर पापकर्मको निर्मूल नाश करने के लिये अपनी शक्ति प्रगट कर बारह प्रकार तप करने लगे। आलस छोड़कर द्वादशांग शास्त्र पढ़ने लगे जो अज्ञान दूर कर केवलज्ञान का कारण हैं । कमो पर्वतोंको गुफाओं में, कभी सूने
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