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धन्यकुमार चरित्र
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यूर्वक विवाह कर सानन्द उसे अपना आधा राज्य दे दिया। धन्यकुमारको मनुष्य और देव आदि सब कोई मानने लगे । ___ कुछ दिनों बाद धन्यकुमारने वैश्य आदि सभी जातिके मनुष्योंसे युक्त एक सुन्दर नगर बसाया और वहांका राजा भी आप ही हुआ। बड़े२ राजपुत्र उसके चरणोंकी सेवा करने लगे।
धन्यकुमार सुखपूर्वक राज्य पालन करने लगा, कुमार समय२ पर जिनधर्मकी बड़ी प्रभावना किया करता था । __इस प्रकार धन्यकुमारका दर्शन उज्जयिनीमें राजा मन्त्री आदि सभी लोगोको बड़ा ही सुखकर होता था । परन्तु खेद है कि उसके माता पिता तो दिन रात दिलके भीतर ही भीतर इसके वियोगसे जल रहे थे ।
अब कुछ धन्यकुमारके माता पिताका हाल सुनिये
जब धन्यकुमार वहांसे चला आया उसी दिन घरके रक्षक देवता लोगोंने उसके माता पिता और भाईयोंको निकाल घर बाहिर कर दिये । वे सब वहांसे निकलकर फिर अपने पुराने घर पर गये ।
इस वक्त इनकी हालत बड़ी बुरी थी । । ये ऐसे मालूम देते थे जैसे देवाग्निसे जले हुए वृक्ष हों, बड़े ही शोकसे पीड़ित तथा दुःखके मारे विमूढ़ हो रहे थे।
उस वक्त शहरके लोग बड़े ही आश्चर्यके साथ परस्पर में कहते थे कि देखो ! ये लोग कितने निर्दयी और पापी हैं-इनका हृदय वज्रकी तरह बहुत कठोर है जो ऐसे सपूत्रके चले जानेपर भी अभीतक जीते हैं अथवा यों कह लो कि दुःखी पुरुषोंके पास मृत्यु भी आकर नहीं फटकती है क्योंकि उनके बड़ा ही खोटे कर्मोंका उदय बना महता है।
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